पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद से ही राजनीतिक दलों की हरियाणा पर खास निगाहें हैं क्योंकि यहां लोकसभा चुनाव के बाद इसी साल विधानसभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में सियासी सरगर्मियां यहां ज्यादा देखने को मिलेंगी। लोकसभा के लिए चुनाव कार्यक्रम घोषित होने से पहले देश का चुनावी मिजाज समझने के लिए अपनी यात्रा का रुख मैंने इसीलिए हरियाणा की तरफ भी किया। चंडीगढ़ से रोहतक के लिए बस से रवाना हुआ। पानीपत से बस में सवार हुए झज्जर के मानाराम का कहना था कि पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा को प्रचंड जीत मिली थी। इस बार यहां कांग्रेस तो सक्रिय है ही, आम आदमी पार्टी भी जोर लगा रही है। वैसे आम आदमी पार्टी का लोकसभा चुनाव से ज्यादा फोकस विधानसभा चुनाव पर लग रहा है। मानाराम के हिसाब से हरियाणा में किसान आंदोलन से बड़ा कोई मुद्दा अभी नजर नहीं आता।
बस ने रोहतक शहर में प्रवेश किया तो भीतर से ही राजीव गांधी खेल संकुल का दृश्य अन्य शहरों से अलग नजर आया। खिलाड़ी खुद को तराशते नजर आए। ऐसे में बस स्टैंड पर उतरकर उत्सुकता से मैं भी सीधे खेल संकुल पहुंच गया। यहां अन्य राज्यों के खिलाड़ी भी अभ्यासरत नजर आए। एशियाई कांस्य पदक विजेता पूजा ने खिलाडिय़ों का दर्द साझा किया। वह बोलीं- मुझे 75 हजार रुपए की आर्थिक सहायता मिलनी थी, वह नहीं मिल पाई है। दो वर्ष की बकाया राशि अटकी हुई है। पूजा ओलम्पिक खेलों के लिए तैयारी कर रही हैं। आगरा की जाह्नवी ने कहा, यहां प्रशिक्षण अच्छा मिलता है। इसलिए यहां आई, लेकिन सरकार की ओर से अभी जो प्रोत्साहन राशि मिल रही है, वह पर्याप्त नहीं है। खिलाडिय़ों की समस्याएं दूर होनी चाहिए। खेल पर राजनीति तो होनी ही नहीं चाहिए।
2019 में हुए विधानसभा चुनाव में 90 सीटों में से भाजपा को 40, कांग्रेस को 31, आइएनएलडी को 1, जेएनजेपी को 10 व एक सीट एचएएलपी को मिली। वहीं 7 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी जीते। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 46 प्रत्याशी मैदान में उतारे, लेकिन सभी की जमानत जब्त हो गई थी। पंजाब में सफलता के बाद आम आदमी पार्टी हरियाणा में सक्रिय है।
रोहतक के सर छोटूराम स्टेडियम में ओम प्रकाश मलिक से चुनावी चर्चा छेड़ी तो वे मुखर नजर आए। बोले- हरियाणा में बेरोजगारी, महंगाई और फसलों के समर्थन मूल्य के मुद्दे को लेकर लोगों में असंतोष है। पिछले चुनाव में सभी 10 सीटें जीतने वाली भाजपा के सामने इस बार चुनौती कम नहीं है। राममंदिर के मुद्दे का प्रभाव यहां दिखा नहीं। फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य का गारंटी कानून और कर्जमाफी समेत अन्य मांगों को लेकर हरियाणा और पंजाब के किसान आंदोलनरत हैं। फिलहाल तो यहां किसानों की लहर ही है। किसानों के मुद्दों को कौनसा दल किस तरह साधेगा, यही सवाल चुनावों में गेमचेंजर हो सकता है।
स्टेडियम के गेट के पास ही रतनलाल चौधरी से मुलाकात हुई। मैंने सवाल किया कि इस बार हरियाणा की राजनीतिक हवा का रुख कैसा है। रतनलाल तपाक से बोले- यूं तो जब से हरियाणा बना तब से यहां की राजनीति रोचक रही है। इस बार तो पहलवानों व किसानों के असंतोष की तपिश भी नजर आ रही है। चुनावों से पहले पंजाब और हरियाणा के किसानों को आंदोलन में विपक्ष का भी साथ मिल रहा है।
किसानों के आंदोलन से क्या हरियाणा में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव पर असर पड़ेगा? इस सवाल के जवाब में हरिराम ने कहा, विपक्ष एकजुट नहीं है, इसलिए अभी यह कहना जल्दबाजी होगी। यदि आंदोलन लंबा खिंचता है तो इसका चुनावों पर भी असर देखने को मिल सकता है।
रोहतक बस स्टैंड पर मिले हनुमान चौधरी ने कहा, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री का मामला सियासी तौर पर भले ही थम गया पर हरियाणा की सियासत में यह अभी भी चर्चा में है। पहलवानों का मुद्दा भी चर्चा के केंद्र में इसलिए हैं क्योंकि देश के ज्यादातर नामी पहलवान हरियाणा से आते हैं। इनमें महिला खिलाड़ी भी शामिल हैं। उधर, पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा के बाद से ही हरियाणा की राजनीति में अलग तरह की हलचल शुरू हो गई है। वजह यह भी है कि राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख जयंत चौधरी ने विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन से दूरी बना ली है।
हरियाणा के गठन से अब तक किसी एक दल का दबदबा नहीं रहा। यहां कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल, हरियाणा विकास पार्टी, समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय), जनता दल जैसे दल सत्ता में रह चुके हंै। वर्ष 2014 से भाजपा की सरकार है। हरियाणा में तीन बार राष्ट्रपति शासन रहा। वर्ष 1966 में हरियाणा का गठन होने पर कांग्रेस ने भगवत दयाल शर्मा को सीएम बनाया था। वर्ष 1968 से 1975 तक बंसीलाल सीएम रहे। यहां ओमप्रकाश चौटाला एक बार केवल छह दिन ही मुख्यमंत्री रह पाए।