सीबीआई ने इस मामले में अभी तक की अपनी जांच की स्टेटस रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश की है। सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हम घटना होने के 5 दिन बाद मौके पर पहुंचे, लेकिन तबतक वहां कई महत्वपूर्ण बदलाव किए जा चुके थे।
इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोलकाता पुलिस ने पोस्टग्रेजुएट ट्रेनी डॉक्टर के कथित यौन उत्पीड़न और हत्या के मामले को संभालने में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया, “सीबीआई ने पांचवें दिन जांच शुरू की और तब तक सब कुछ बदल चुका था।”
सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट में कोलकाता पुलिस द्वारा दर्ज की गई तारीख और समय में विसंगतियों को उजागर किया गया। रिपोर्ट में आरजी कर के पूर्व प्रिंसिपल से जुड़ी वित्तीय अनियमितताओं को भी चिन्हित किया। पूर्व प्रिंसिपिल ने कथित तौर पर सीसीटीवी कैमरे खरीदने के बजाय उन्हें किराए पर लिया था।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि पोस्टमार्टम कब हुआ था। सिब्बल ने जवाब दिया कि पोस्टमार्टम शाम 6:10 से 7:10 बजे के बीच हुआ था। कोर्ट ने कहा कि चूंकि यह अप्राकृतिक मौत का मामला था, इसलिए सीआरपीसी के दिशा-निर्देशों का सावधानीपूर्वक पालन किया जाना चाहिए था।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला ने कहा, “आपके राज्य (पश्चिम बंगाल) द्वारा अपनाई गई पूरी प्रक्रिया ऐसी है, जो मैंने अपने 30 वर्षों के करियर में कभी नहीं देखी।” अदालत ने कहा कि रात में अपराध होने के बावजूद, घटनास्थल को 18 घंटे से अधिक समय बाद ही सुरक्षित किया गया।
कोर्ट ने कहा कि एक अप्राकृतिक मौत का मामला रात 11:30 बजे दर्ज किया गया, जब एक अधिकारी पुलिस स्टेशन वापस आया। यह पंजीकरण पोस्टमार्टम के बाद हुआ। सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि दाह संस्कार के बाद सुबह 11:45 बजे एफआईआर दर्ज की गई, जिसकी वीडियोग्राफी वरिष्ठ डॉक्टरों और सहकर्मियों के आग्रह पर ही की गई, क्योंकि उन्हें संदेह था कि इसमें गड़बड़ी है।
इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि जिस पुलिस अधिकारी ने मामले में पहली शिकायत दर्ज की है उसे अगली सुनवाई में कोर्ट में उपस्थित रहने का निर्देश दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि सीबीआई इस मामले को संभालने में अनियमितताओं की जांच करे।
कोर्ट के निर्देश से साफ है कि अगली सुनवाई के दौरान पुलिस अधिकारी से मुश्किल सवाल किए जा सकते हैं। जिस तरह से इस पूरे मामले में पुलिस का ढुलमुल रवैया सामने आया है, उसको लेकर कोर्ट कतई रियायत के मूड में नहीं है। ऐसे में देखने वाली बात है कि अगली सुनवाई के दौरान संबंधित पुलिस अधिकारी किस तरह से मुश्किल सवालों के जवाब देते हैं।