महाराष्ट्र के पुणे जिले से एक चौंकाने वाली और दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है। एक 24 वर्षीय महिला के ससुराल पक्ष ने उसके घर पर अवैध रूप से अबॉर्शन करवाने का निर्णय लिया, जिसके नतीजे में न केवल 4 महीने का भ्रूण, बल्कि महिला की भी जान चली गई। इस घटना ने पूरे इलाके में हड़कंप मचा दिया है और समाज में इस तरह की अवैध प्रथाओं के खिलाफ एक बार फिर से चर्चा छिड़ गई है।

यह घटना इंदापुरम पुलिस थाना क्षेत्र में हुई। मृतक महिला अपने पति, सास, ससुर, और दो छोटे बच्चों के साथ रह रही थी। पुलिस के अनुसार, यह महिला तीसरी बार गर्भवती थी और हाल ही में पता चला था कि वह एक बेटी को जन्म देने वाली है। जानकारी के अनुसार, ससुराल पक्ष ने भ्रूण की जांच करवाई और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि परिवार में एक और बेटी का आना उनके लिए स्वीकार्य नहीं था।

महिला के ससुराल वालों ने अवैध गर्भपात करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने एक प्राइवेट डॉक्टर को घर पर बुलवाया। इस प्रकार के अवैध गर्भपात की प्रक्रिया को सुरक्षित समझते हुए, परिवार ने सोचा कि इससे उन्हें किसी भी प्रकार की कानूनी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा। गर्भपात के बाद, परिवार ने 4 महीने के भ्रूण को एक फार्म हाउस के खेत में दफनाने का निर्णय लिया। हालांकि, गर्भपात के दौरान महिला की स्थिति बिगड़ गई। बहुत अधिक खून बहने लगा, जिससे उनकी तबीयत तेजी से deteriorate होने लगी। परिवार ने तुरंत महिला को अस्पताल ले जाने का निर्णय लिया, लेकिन जब तक वे अस्पताल पहुंचे, महिला ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।

इंदापुरम थाने के अधिकारियों के अनुसार, जब महिला को अस्पताल ले जाया गया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अस्पताल पहुंचने से पहले ही महिला की जान चली गई। इस घटना से महिला के परिवार में शोक की लहर दौड़ गई। मृतका के भाई ने ससुराल पक्ष के खिलाफ FIR दर्ज करवाई है, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 91, 90 और 85 के तहत आरोप लगाए गए हैं। पुलिस ने तत्परता से कार्रवाई करते हुए महिला के पति और ससुर को गिरफ्तार कर लिया है, वहीं सास के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है।

इस घटना ने समाज में महिलाओं के स्वास्थ्य, अधिकारों और गर्भपात की प्रक्रिया के प्रति जागरूकता की आवश्यकता को फिर से उजागर किया है। यह मामला इस बात का संकेत है कि अवैध गर्भपात की प्रथा कितनी खतरनाक हो सकती है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए समाज में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। महिलाओं को अपने अधिकारों और स्वास्थ्य से संबंधित जानकारी हासिल करने की जरूरत है ताकि वे अपने स्वास्थ्य और कल्याण के लिए उचित निर्णय ले सकें।

यह मामला न केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि यह समाज में महिलाओं के स्वास्थ्य और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने की आवश्यकता को भी उजागर करता है। अब देखने वाली बात यह होगी कि इस मामले में न्याय कैसे सुनिश्चित किया जाता है और क्या इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोका जा सकेगा। यदि समाज और प्रशासन इस दिशा में ठोस कदम उठाते हैं, तो भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता है।

 

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