दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश मनमोहन ने बुधवार को कहा कि जिन मुद्दों पर केंद्र एवं राज्य सरकारों को निर्णय लेना है, उनका हल नहीं किया जा रहा है और सब कुछ अदालतों पर छोड़ दिया जा रहा है।

न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि बड़ी संख्या में जनहित याचिकाएं अदालतों में आ रही हैं जो न्यायपालिका के अधिकारक्षेत्र में नहीं होनी चाहिए लेकिन अदालतों को उनसे जूझना पड़ता है क्योंकि कोई अन्य समाधान नहीं है और किसी भी नागरिक को बिना समाधान के नहीं छोड़ा जा सकता।

न्यायमूर्ति मनमोहन, उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग ‘(डीपीआईआईटी)- सीआईआई, व्यापार करने में सुगमता पर राष्ट्रीय सम्मेलन’ के एक सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि एक विचारधारा यह है कि यदि आपके पास अधिक मामले हैं तो इसका मतलब है कि आपका संस्थान अच्छा काम कर रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘आज आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि कोई भी बड़ा मुद्दा जो उठता है वह अदालत में आता है। ऐसा क्यों है? चाहे वह प्रदूषण हो या इस देश में उठने वाला कोई राजनीतिक मुद्दा हो, यहां तक कि समलैंगिक विवाह भी। यह अदालत में क्यों आ रहा है?’’

न्यायाधीश ने कहा, “ऐसा इसलिए है क्योंकि अदालत के प्रति जनता में विश्वास है। उनका मानना है कि अदालत के अलावा कोई अन्य संस्थान जनता की बात सुनने को तैयार नहीं है। उनका मानना है कि उनकी बात केवल अदालत में ही सुनी जाती है।’’

अदालतों में बड़ी संख्या में मामलों के लंबित रहने के मुद्दे पर उन्होंने कहा, ‘‘आज स्थिति यह है कि प्रत्येक मामले में जहां केंद्र सरकार या राज्यों को निर्णय लेना है, वे निर्णय नहीं ले रहे हैं और इसे निर्णय लेने के लिए अदालतों पर छोड़ रहे हैं। इसलिए, हमारे पास बड़ी संख्या में जनहित के मामले आ रहे हैं जो वास्तव में हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं होने चाहिए।’’

उन्होंने सवाल किया कि यदि कोई फैसला नहीं हो रहा है तो किसी नागरिक को असहाय कैसे छोड़ा जा सकता है और चाहे छोटा मुद्दा हो या बड़ा, लेकिन किसी को भी समाधान के बिना नहीं छोड़ा जा सकता।

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कुत्तों के खतरे का मामला अदालत में आ रहा है क्योंकि नगर निकाय प्रशासन काम नहीं कर रहा है और जब लोग शिकायत करते हैं कि हम पीड़ित हैं, बच्चे पीड़ित हैं और कुत्तों ने काट लिया है, तो आप उन्हें समाधान के बिना नहीं छोड़ सकते। आप सरकार से निर्णय लेने के लिए कहते हैं लेकिन वे निर्णय नहीं करते।’’
न्यायमूर्ति मनमोहन ने न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने, बुनियादी ढांचे और डिजिटलीकरण में सुधार और अधिक बजट आवंटित करने की भी वकालत की।

उन्होंने कहा, “इस देश में प्रत्येक न्यायाधीश को रोजाना 70 से 80 मामले का निस्तारण करना पड़ता हैं। आप विदेश जाएं और वे बताएंगे कि वे एक साल में 70 से 80 मामले का निस्तारण करते हैं और यह हम दैनिक आधार पर करते हैं।’’

उन्होंने प्रगतिशील कानून लाने के लिए भी सरकार की सराहना की जो समय से थोड़ा आगे हैं। न्यायाधीश ने कहा कि अब वे दंडात्मक कानूनों को बदलने की भी योजना बना रहे हैं, इसलिए बहुत दूरदर्शी कानून आ रहे हैं।

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