संविधान के अनुच्छेद 39(b) के वाक्यांश ‘समुदाय के भौतिक संसाधन’ के दायरे में क्या निजी संपत्ति को शामिल किया जा सकता है, चीफ जस्टिस समेत सुप्रीम कोर्ट की 9-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने गुरुवार को इस मुद्दे पर फिर से सुनवाई की। भारत सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल (AG) आर वेंकटरमाणी ने आर्टिकल 39(b) की व्याख्या करते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि आर्टिकल 39(b) को अतीत के सभी राजनीतिक और आर्थिक सिद्धांतों से स्वतंत्र रूप में देखा जाना चाहिए। चूंकि समाज की संसाधनों और जरूरतों की परिभाषा समय के साथ विकसित होती है, इसलिए संवैधानिक प्रावधान को सिर्फ एक वैचारिक रंग में रंगना भारतीय संविधान की बेहद लचीली प्रकृति के अनुकूल नहीं होगा।

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि ‘समुदाय के भौतिक संसाधन’ की अभिव्यक्ति को एक निश्चित आर्थिक या राजनीतिक विचारधारा के दृष्टिकोण से लेबल करना गलत होगा, विशेष रूप से मार्क्सवाद जैसी विचारधारा जो आज समय की कसौटी पर खरी नहीं उतरती है। शायद, आर्टिकल 39(b) के अर्थ को देखने का सटीक लेंस संवैधानिक मूल्यों के समग्र उद्देश्य से है, जिसने इस प्रावधान को जन्म दिया। सीधे शब्दों में कहें तो आर्टिकल 39(b) की व्याख्या लगातार विकासमान संवैधानिक सिद्धांतों के दृष्टिकोण से होनी चाहिए, न कि किसी चश्मे में फंसी ऐतिहासिक विचारधारा से।

गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की सदारत वाली बेंच को तय करना है कि क्या प्राइवेट प्रॉपर्टी अनुच्छेद-39(बी) के तहत ‘समुदाय के संसाधन’ के तहत आती हैं? अर्थात क्या राज्य किसी निजी संपत्ति को सामुदायिक भलाई के लिए पुनर्वितरित कर सकता है? दरअसल, कांग्रेस ने जब से लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता लगाने का वादा किया है, तब से वेल्थ री-डिस्ट्रीब्यूशन के मुद्दे ने जोर पकड़ा हुआ है।

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