सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने की मांग वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। मामले पर 10 दिनों तक चली सुनवाई के बाद प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस.के. कौल, एस.आर. भट, हिमा कोहली और पी.एस. नरसिम्हा की पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया। इस याचिका में गुरुवार को वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एम. सिंघवी, राजू रामचंद्रन, के.वी. विश्वनाथन, आनंद ग्रोवर और सौरभ कृपाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया। केंद्र ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि, कोर्ट का शादी से कुछ कम, लेकिन मौजूदा स्थिति से कुछ ज्यादा घोषणा किए जाने की संभावना का संकेत देना सही कदम नहीं हो सकता। इसने जोर देकर कहा कि, विधायिका के पास नतीजे को नियंत्रित करने के लिए उपाय हैं। और अदालत उस घोषणा के नतीजों को देखने, परिकल्पना करने, समझने और उसके बाद निपटने में सक्षम नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, घोषणा का रूप, सामग्री और रूपरेखा महत्वपूर्ण है, हम सभी यह मान रहे हैं कि घोषणा रिट के रूप में होगी जो इसे मंजूरी देती है। केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि, पीठ ने घोषणा की संभावना को शादी से कुछ कम, लेकिन वर्तमान स्थिति से कुछ अधिक होने का संकेत दिया था।
समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर बहस में अदालत की सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने मंगलवार को याचिकाकर्ताओं के पक्ष के इस तर्क का प्रतिवाद किया कि, चूंकि संसद उनके विवाह के अधिकार के बारे में कुछ नहीं करेगी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट को एक संवैधानिक घोषणा जारी करनी चाहिए। उनकी शादियों को कानूनी मंजूरी देने वाला कानून बनाने के लिए मजबूर करना चाहिए।
पीठ ने कहा कि यह देखते हुए कि अतीत में संसद ने कानून बनाकर संवैधानिक घोषणाओं का पालन किया था, यह कहना सही नहीं हो सकता कि सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक घोषणा जारी नहीं कर सकती।
केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि, सात राज्यों ने समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर जवाब दिया है। राजस्थान, आंध्र प्रदेश और असम ने ऐसे विवाहों को कानूनी मंजूरी देने की याचिकाकर्ताओं की दलील का विरोध किया है। मणिपुर, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और सिक्किम ने कहाकि, इस मुद्दे पर बहुत गहन और विस्तृत बहस की जरूरत है और ये राज्य सरकारें अपनी प्रतिक्रिया तुरंत प्रस्तुत नहीं कर सकतीं हैं।