देश में समलैंगिक विवाह की लगातार उठती मांग पर केंद्र सरकार ने सख्त रुख अपना रखा है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार (18 अप्रैल) को इस विषय पर अहम सुनवाई होगी। शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ यह तय करेगी कि, पुरुष से पुरुष और स्त्री से स्त्री की शादी को कानूनी मान्यता दी जाए अथवा या नहीं? सुनवाई से पूर्व केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में एक और हलफनामा देकर सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है। केंद्र ने कहा कि, इस मसले पर फैसला लेने का अधिकार अदालत को नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट में कल होने वाली सुनवाई से ठीक पहले केंद्र ने एक बार फिर समलैंगिक विवाह पर अपना रुख स्पष्ट किया है। केंद्र का विरोध अब भी जारी है। केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर मामले से जुडी सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है। केंद्र सरकार ने कहा कि, शादियों पर फैसला सिर्फ संसद  ही ले सकती है, शीर्ष अदालत नहीं।

इससे पहले, 13 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले को पांच जजों की संवैधानिक पीठ को ट्रांसफर किया था। समलैंगिक विवाह मामले पर सीजेआई चंद्रचूड़ , जस्टिस एसके कौल , जस्टिस रविंद्र भट , जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच 18 अप्रैल से सुनवाई करेगी।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर निवेदन किया है कि, सभी याचिकाओं को खारिज कर दी जाए। केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा है कि, समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) की मांग ‘सामाजिक स्वीकृति’ के उद्देश्य से केवल शहरी अभिजात्य विचार है। इसे मान्यता देने का अर्थ कानून की एक पूरी शाखा को दोबारा लिखना होगा। केंद्र ने अपनी तरफ से ये भी कहा कि, शादियों पर फैसला सिर्फ संसद ही ले सकती है, सुप्रीम कोर्ट नहीं।

केंद्र ने इस बात पर जोर देकर कहा है कि, केवल शहरी अभिजात्य विचारों का प्रतिनिधित्व करने वाली याचिकाओं की तुलना उचित विधायिका से नहीं की जा सकती। सरकार ने ये भी कहा, सक्षम विधायिका को सभी ग्रामीण, अर्ध-ग्रामीण और शहरी आबादी के व्यापक विचारों और आवाज को ध्यान में रखना होगा।’

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