शहीदों की नगरी शाहजहांपुर में जम्मू कश्मीर में शहीद हुए सारज के भी परिवार के लोग शहादत को याद कर अपना सीना चौड़ा कर रहे हैं। शहीद के परिवार में सरकार ने ना केवल विधवा पत्नी को नौकरी दी है बल्कि सड़क का नाम भी उसके नाम पर रखकर परिवार को खुशियां दी हैं। वहीं, अब शहीद का परिवार सारज सिंह के नाम पर शहीद द्वार की मांग कर रहा है।

दरअसल शाहजहांपुर जिले के काकोरी कांड नायक शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल अशफ़ाकउल्ला खां और शाहिद रोशन सिंह के नाम के बाद ताजा नाम सारज सिंह का भी जुड़ गया है। बंडा के अख्तियारपुर गांव के रहने वाले सारज सिंह के शहीद होने से 5 साल पहले उन्होंने आर्मी ज्वाइन की थी। शादी के 1 साल बाद ही जब जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान से आए आतंकियों की खोज जब सारज कर रहे थे। इसी दौरान घात लगाए आतंकियों ने हमला बोलते हुए सारज सिंह के साथ पांच सैनिकों को शहीद कर दिया था।

सारज सिंह की शहादत के बाद न केवल पूरे परिवार के गम का पहाड़ टूट पड़ा था और पत्नी रजिदंर कौर विधवा हो गई थी। अपने पति सारज को खोने के बाद पत्नी राजिंदर कौर की आंखें रोते-रोते पथरा गई थी। सरकार ने इस परिवार पर अपना भरोसा जताते हुए न केवल शहीद की पत्नी रजिदंर कौर को सरकारी नौकरी दी बल्कि मदद के तौर पर 50 लाख रुपए भी दिए थे। यही नहीं उसके नाम पर गांव की सड़क भी बनवाई थी।

शहीद सारज सिंह के पिता विचित्र सिंह ने बताया कि सारज सिंह की कुर्बानी के बाद अभी इस परिवार हौसला कम नहीं हुआ है। देश पर मर मिटने वाले बेटे सारज की यादें हर समय उसके आंखों में घूमा करती है। अपने खर्च पर अपने छोटे बेटे सारज सिंह की प्रतिमा घर के बाहर लगवाई है। उन्होंने बताया कि शहीद सारज के दोनों बड़े भाई गुरप्रीत सिंह और सुखप्रीत सिंह सेना में कार्यरत हैं। पूरा परिवार देश सेवा की लिए मर मिटने के लिए हमेशा से ही अपने बेटों को आशीर्वाद देते रहते हैं। हालांकि प्रशासन और सरकार ने सारी सुविधाएं दी है लेकिन अब भी इस परिवार की मांग है कि गांव का लिए शहीद सारज के नाम पर शहीद द्वार बनवाने के साथ उन्हें एक लाइसेंस भी दिया जाए ताकि वह अपने परिवार की सुरक्षा कर सके।

देश की मातृभूमि पर जान न्यौछावर करने वाले शहीद का परिवार बेटे सारज को खोने बाद जिंदादिली से जी रहा है। पिता अपनी खेती बाड़ी कर पूरा परिवार चला रहे हैं। ऐसे में यह परिवार चाहता है कि इस गांव में शहीद सारज के नाम पर स्कूल के नाम रखे जाएं बल्कि बंडा चौराहे पर उसकी मूर्ति भी लगे ताकि देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाली इस शहीद से शहीदों की नगरी से लोग प्रेरणा ले सकें।

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