प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले में न सिर्फ देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति के प्रति वैश्विक आस्था और श्रद्धा का भी अनोखा उदाहरण देखने को मिल रहा है। इस बार महाकुंभ में विदेशी युवतियों ने कालभैरवाष्टकम का पाठ कर न केवल भारतीय संस्कृति की महिमा का सम्मान किया, बल्कि दुनिया भर में भारत की धार्मिक धरोहर को और अधिक मजबूत किया।
कालभैरवाष्टकम, भगवान शिव के एक रूप कालभैरव से संबंधित एक भव्य और दिव्य स्तोत्र है, जिसे आठ श्लोकों के रूप में लिखा गया है। इसे शिवभक्तों द्वारा विशेष रूप से पूजा में गाया जाता है। यह स्तोत्र किसी भी प्रकार के संकट और भय को नष्ट करने में सहायक माना जाता है, और इसके पाठ से भक्तों की आत्मशक्ति में वृद्धि होती है।
महाकुंभ, जो भारत के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन के रूप में जाना जाता है, इस बार भी विभिन्न देशों से आए श्रद्धालुओं का स्वागत कर रहा है। यहां आए एक समूह ने कालभैरवाष्टकम का पाठ किया, जिससे उनके भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम और श्रद्धा की झलक मिली। इन विदेशी युवतियों ने न केवल संस्कृत के श्लोकों को सही तरीके से उच्चारित किया, बल्कि भारतीय धार्मिकता और पूजा पद्धतियों के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा व्यक्त की।
प्रियंका मिश्रा नाम की एक यूजर ने अपने सोशल मीडिया पर इस घटना को साझा करते हुए लिखा, “विदेशी युवतियों ने कालभैरवाष्टकम का पाठ कर भारतीय संस्कृति का गौरव बढ़ाया। यह उदाहरण दर्शाता है कि भारत की संस्कृति का आकर्षण और प्रभाव केवल भारतीयों तक सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया भर में इसे सम्मान और श्रद्धा मिल रही है।”
महाकुंभ मेला एक ऐसा आयोजन है, जहां न केवल भारतीय बल्कि विदेशी पर्यटक भी अपनी आस्था व्यक्त करने आते हैं। इस बार भी महाकुंभ में विदेशी श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या ने भारतीय धार्मिकता के प्रति उनकी गहरी रुचि को दर्शाया।
इस विशेष घटना ने यह संदेश भी दिया कि धर्म और संस्कृति की कोई सीमाएं नहीं होतीं। जब विभिन्न देशों की महिलाएं भारतीय शास्त्रों के श्लोकों का उच्चारण करती हैं, तो यह भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और वैश्विक एकता का प्रतीक बनता है। कालभैरवाष्टकम का पाठ इन विदेशी युवतियों द्वारा किया गया और वह भी महाकुंभ के पवित्र स्थल पर, इसने यह सिद्ध कर दिया कि संस्कृति और श्रद्धा में कोई भेद नहीं होता, यह हर मानव हृदय में समाहित हो सकती है।