कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इस बार कारण बना है ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर उनका दिया बयान, जिसमें उन्होंने भारत की विदेश नीति और रक्षा संचालन को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। राहुल गांधी के बयानों ने भारतीय राजनीति में एक बार फिर बहस छेड़ दी है—क्या ये बयान जवाबदेही के लिए हैं, या फिर चर्चा में बने रहने की रणनीति?
ऑपरेशन सिंदूर पर राहुल का हमला
मई 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारतीय वायुसेना द्वारा की गई सैन्य कार्रवाई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम दिया गया। इस अभियान के बाद, राहुल गांधी ने 17 और 19 मई को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर और विदेश मंत्रालय पर सवाल उठाए।
उन्होंने पूछा:
➤ क्या पाकिस्तान को इस ऑपरेशन की जानकारी पहले दी गई थी?
➤ अगर हाँ, तो इससे हमारी वायुसेना को कितना रणनीतिक नुकसान हुआ?
➤ इसके साथ ही उन्होंने विदेश मंत्री की कथित टिप्पणी को ‘अपराध’ बताया, जिससे राजनीतिक हलकों में उबाल आ गया।
सरकारी पक्ष की सफाई
विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे पर बयान जारी कर बताया कि पाकिस्तान को ऑपरेशन के शुरू होने के बाद सूचित किया गया था, न कि पहले। मंत्रालय के अनुसार, यह एक सामान्य प्रक्रिया है जब सैन्य कार्रवाई की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर आशंका हो सकती है। इस सफाई के बावजूद भाजपा ने राहुल पर हमला तेज कर दिया। पार्टी प्रवक्ताओं ने उन्हें ‘पाकिस्तान की भाषा बोलने’ का आरोप लगाते हुए कहा कि यह बयान देश की सुरक्षा एजेंसियों का मनोबल गिराने वाला है।
गलवान से लेकर पहलगाम तक: पुरानी मिसालें
➤ यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा पर सरकार को घेरा हो।
➤ 2022 में गलवान घाटी संघर्ष के दौरान भी उन्होंने सरकार की चुप्पी और चीन को लेकर रणनीति पर सवाल उठाए थे।
➤ उन्होंने बार-बार “पारदर्शिता की कमी” और “झूठ छुपाने” का आरोप लगाया था।
➤ 2023–2025 के बीच, चीन, अमेरिका और खाड़ी देशों के साथ संबंधों पर भी उन्होंने विदेश मंत्रालय की नीतियों की आलोचना की।
राजनीतिक विश्लेषण: रणनीति या प्रचार?
राहुल गांधी के बयानों को लेकर राजनीतिक विश्लेषक दो खेमों में बंटे नजर आते हैं:
समर्थकों की राय:
उनका मानना है कि लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका ही सरकार से जवाबदेही मांगना है। राहुल संवेदनशील मुद्दों को उठाकर एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं।
आलोचकों की राय:
वे कहते हैं कि राहुल के बयान अक्सर बिना पूरी जानकारी के होते हैं और भावनात्मक अपील पर आधारित होते हैं। यह तरीका मीडिया का ध्यान खींचने और सुर्खियों में बने रहने की रणनीति हो सकता है।
