डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को हरियाणा सरकार की तरफ से बार-बार परोल या फर्लो पर रिहा किए जाने के खिलाफ याचिका सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने मना किया. कोर्ट ने कहा कि जनहित याचिका के नाम पर किसी व्यक्ति विशेष को मिली राहत को चुनौती नहीं दी जा सकती. अगर किसी नियम या हाई कोर्ट के आदेश का उल्लंघन हो रहा हो, तो इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है.

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने यह याचिका दाखिल की थी. इसमें 2022 से अब तक राम रहीम के कई बार जेल से बाहर आने का विरोध किया गया था. विवादित धर्म गुरु की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह याचिका राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते दाखिल की गई है. याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि जब राम रहीम खुद को धार्मिक व्यक्ति कहते हैं, तो फिर राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की बात कहां से आ गई? इस पर रोहतगी ने कहा कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी भी खुद को धार्मिक संस्था कहता है. उसकी तरफ से ऐसी याचिका का क्या मतलब है?

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस मनोज मिश्रा ने इस बात को भी नोट लिया कि हाई कोर्ट ने एक मामले में यह कहा था कि राम रहीम के परोल की मांग पर सरकार नियमों के मुताबिक विचार कर सकती है. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि राम रहीम की पिछले साल हुई रिहाई हाई कोर्ट के इस आदेश का उल्लंघन थी. इस पर जजों ने कहा कि अगर ऐसा है तो हाई कोर्ट में राज्य सरकार के खिलाफ अवमानना याचिका दाखिल हो सकती है. किसी व्यक्ति विशेष को लक्ष्य बना कर जनहित याचिका की अनुमति नहीं दी जा सकती.

ध्यान रहे कि राम रहीम को हत्या और रेप जैसे जघन्य अपराधों के लिए सजा मिल चुकी है. 2017 में उसे 2 महिला शिष्यों से रेप के लिए 20 साल की सजा मिली थी. राम रहीम और 3 लोगों को 2002 में हुई पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के लिए  भी 2019 में दोषी ठहराया गया था. इस मामले में उसे उम्र कैद की सजा मिली है, लेकिन हरियाणा सरकार उसे बार-बार परोल या फर्लो पर जेल से बाहर आने का मौका देती रही है.

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