भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उसके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने राज्यसभा में बहुमत हासिल कर लिया है। इससे बीजेपी को अपने महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने में बड़ी राहत मिलेगी, जो पिछले कुछ वर्षों से मुश्किल बनी हुई थी।
हाल ही में, 9 राज्यों की 12 राज्यसभा सीटों पर उपचुनाव हुए। इन उपचुनावों में सभी उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए, और एनडीए को 11 सीटों पर जीत मिली। कांग्रेस को सिर्फ एक सीट पर सफलता मिली। वर्तमान में राज्यसभा में कुल 245 सदस्य हैं, जिनमें से 238 सदस्य चुने जाते हैं और 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं। अब एनडीए के पास राज्यसभा में कुल 112 सदस्य हैं, और छह मनोनीत सदस्यों और एक निर्दलीय सदस्य के समर्थन से यह आंकड़ा 119 तक पहुंच गया है, जो बहुमत के आंकड़े को छूता है।
बीजेपी के सदस्यों की संख्या अब 96 हो गई है, जो कि पिछले समय की तुलना में एक महत्वपूर्ण वृद्धि है। इसके अलावा, एनसीपी (अजित पवार गुट) और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (उपेंद्र कुशवाहा) के एक-एक सदस्य भी एनडीए का समर्थन कर रहे हैं। कांग्रेस के पास अब 27 सदस्य हैं, जबकि विपक्षी दलों के पास मिलाकर 85 सदस्य हैं। यह स्थिति एनडीए के लिए एक बड़ी राजनीतिक जीत है, जिससे उसे राज्यसभा में विधेयक पारित कराने में अब विपक्ष के सहयोग की आवश्यकता नहीं होगी।
एनडीए के बहुमत हासिल करने से कई प्रमुख विधेयकों की राह अब आसान हो गई है। इनमें वक्फ (संशोधन) विधेयक जैसे महत्वपूर्ण कानून शामिल हैं, जिन्हें पहले अन्य दलों की मदद से पारित कराना पड़ता था। इसके अलावा, तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) संशोधन विधेयक, 2024 और बॉयलर्स विधेयक, 2024 भी अब उच्च सदन से पारित होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। हाल ही में बजट सत्र के दौरान, राज्यसभा ने जम्मू और कश्मीर विनियोग (संख्या 3) विधेयक, 2024, विनियोग (संख्या 2) विधेयक, 2024 और वित्त (सं.2) विधेयक, 2024 को मंजूरी दी है। हालांकि, वक्फ संपत्तियां (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली) विधेयक, 2014 को राज्यसभा से वापस ले लिया गया था।
हाल ही में निर्वाचित राज्यसभा सदस्यों में कई महत्वपूर्ण नाम शामिल हैं। असम से बीजेपी के मिशन रंजन दास और रामेश्वर तेली, बिहार से मनन कुमार मिश्रा, हरियाणा से किरण चौधरी, मध्य प्रदेश से केंद्रीय मंत्री जॉर्ज कुरियन, महाराष्ट्र से धैर्यशील पाटिल, ओडिशा से ममता मोहंता, राजस्थान से रवनीत सिंह बिट्टू और त्रिपुरा से राजीव भट्टाचार्य शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, एनसीपी के अजित पवार गुट के नितिन पाटिल और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा भी निर्विरोध चुने गए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी तेलंगाना से राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं।
विपक्ष की स्थिति में भी बड़ा बदलाव आया है। अब विपक्ष की ताकत में कमी आई है, जिससे एनडीए को विधेयकों को पारित कराने में आसानी होगी। कांग्रेस राज्यसभा में विपक्ष के नेता के पद को बनाए रखेगी, क्योंकि उसके पास 25 से अधिक सदस्य हैं। विपक्षी दलों की संख्या में कमी का सीधा असर राज्यसभा की कार्यप्रणाली पर पड़ेगा, जिससे एनडीए के लिए विधेयक पारित करना अब सरल हो जाएगा।
राज्यसभा की कुछ सीटें हाल ही में खाली हुई थीं। इनमें असम, बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, त्रिपुरा, तेलंगाना और ओडिशा शामिल हैं। इन खाली सीटों पर उपचुनाव हुए, जिनमें विभिन्न दलों के सदस्य निर्वाचित हुए। असम में कामाख्या प्रसाद ताशा और सर्वानंद सोनोवाल, बिहार में मीसा भारती और विवेक ठाकुर, हरियाणा में दीपेंद्र हुड्डा, मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया, महाराष्ट्र में छत्रपति उदयन राजे भोसले और पीयूष वेद प्रकाश गोयल, राजस्थान में केसी वेणुगोपाल और त्रिपुरा में बिप्लब देव शामिल हैं। तेलंगाना के केशवराव और ओडिशा की ममता मोहंता ने इस्तीफे दिए थे, जिससे इन सीटों पर चुनाव हुए।
बता दें कि वर्तमान में राज्यसभा में बीजेपी के 96 सदस्य हैं। इसके अलावा, जेडीयू के 4, एनसीपी के 3, जेडीएस के 1, आरएलडी के 1, आरपीआई के 1, शिवसेना के 1 और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के 1 सदस्य हैं। विपक्ष में कांग्रेस के 27, टीएमसी के 13, आम आदमी पार्टी के 10, डीएमके के 10, आरजेडी के 5, वाम मोर्चा के 6, समाजवादी पार्टी के 4, जेएमएम के 3, मुस्लिम लीग के 2, शरद पवार गुट के 2, उद्धव ठाकरे गुट के 2, केरल कांग्रेस (M) का 1, और MDMK का 1 सदस्य है। अन्य दलों में बीजेडी के 8, AIDMK के 4, बीआरएस के 4, YSRCP के 11, असम गाना परिषद का 1, बसपा का 1, मिजो नेशनल फ्रंट का 1, एनपीपी का 1, पीएमके का 1, TMC (M) का 1 और UPP (L) का 1 सदस्य शामिल हैं। नॉमिनेट की संख्या 6 है और निर्दलीय और अन्य की संख्या 3 है। एनडीए के राज्यसभा में बहुमत हासिल करने से सरकार को महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने में अब किसी भी अड़चन का सामना नहीं करना पड़ेगा। यह बदलाव भारतीय राजनीति में एक नई दिशा और स्थिरता लाने की संभावना को उजागर करता है।