प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में राहुल गांधी और विपक्ष पर जमकर हमला बोलते हुए कहा कि जिनका खुद का होश ठिकाने नहीं है वह ‘मेरे काशी के बच्चों’ को नसेड़ी बता रहे हैं।

मोदी ने साफ कहा कि उत्तरप्रदेश की 80 सीटें एनडीए जीतेगा और विपक्ष को जमानत बचाना भी मुश्किल होगा। भाजपा की उम्मीदों के विपरीत जब सपा और कांग्रेस का गठबंधन धरातल पर उतर गया और राहुल के अमेठी से और प्रियंका के रायबरेली से लड़ने की गंभीर खबरें बाहर आने लगी तो प्रधानमंत्री मोदी का राहुल पर हमला करना और ‘मेरे उत्तर प्रदेश और मेरे काशी’ का जिक्र करना जरूरी हो गया।

प्रधानमंत्री मोदी यह बताना चाहते थे कि वह उत्तर प्रदेश से सांसद है जबकि राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के लिए प्रवासी नेता हैं क्योंकि अब वह उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व नहीे करते हैं। मोदी बार-बार ‘मेरे उत्तर प्रदेश’ का जिक्र कर खुद को स्थानीय और राहुल को बाहरी बताने की कोशिश करते रहे।

प्रधानमंत्री मोदी उत्तर प्रदेश की 80 की 80 सीटें जीतने का दावा करते रहे लेकिन मोदी और पूरी भाजपा भी इस बात को समझती है कि सपा और कांग्रेस के साथ आने से मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर भाजपा के लिए चुनौती तय है। भाजपा राम मंदिर से रिचार्ज है लेकिन जातिगत समीकरणों को साधने के लिए भी पूरी ताकत लगा रही है। उत्तर प्रदेश में भाजपा अपने लिए बेहद मुश्किल सीटों में मैनपुरी, बदायूं, संभल, आजमगढ़, गाजीपुर, अमरोहा, मुरादाबाद और फिरोजाबाद को देख रही है।

संभल, गाजीपुर, अमरोहा और मुरादाबाद मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण और मैनपुरी, बदायूं, आजमगढ़ और फिरोजाबाद सपा का गढ़ होने के कारण इन सीटों को भाजपा अपने लिए चुनौती मान रही है। खबर है कि भाजपा ने इन चुनौतीपूर्ण सीटों पर अखिलेश और कांग्रेस गठबंधन को पटखनी देने के लिए मायावती से पर्दे के पीछे दोस्ती का हाथ बढ़ाया है।

भाजपा चाहती है कि मायावती मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर दमदार मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर और अपने कोर वोटर को सपा कांग्रेस से दूर रखकर वोटों का बंटवारा करने में महती भूमिका निभाए। इससे मुश्किल सीटों पर भाजपा उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित हो सकेगी।

भाजपा के सूत्र बताते हैं कि भाजपा ने इसके एवज में मायावती के भतीजे आकाश आनंद को राज्यसभा भेजने या किसी एक मुस्लिम बाहुल्य सीट से उसके चुनाव लड़ने पर समर्थन देने का भरोसा दिया है। मायावती भाजपा के प्रस्ताव पर कितना अमल करती है यह आने वाला समय बताएगा, लेकिन यह तय है कि भारतीय जनता पार्टी हर हाल में उत्तर प्रदेश में 78 प्लस का टारगेट लेकर चल रही है।

भाजपा उत्तर प्रदेश में पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों तक मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार की योजनाओं के लाभार्थी वर्ग से सीधे संवाद करने की रणनीति पर काम कर रही है। भाजपा जानती है कि सिर्फ राम के नाम पर उत्तर प्रदेश में बेड़ा पार नहीं होगा। सबको जोड़ने के लिए राम का नाम और मोदी के काम का कॉकटेल तैयार करना होगा जिससे मुस्लिम वर्ग को छोड़कर सभी मतदाताओं को एक छतरी के नीचे लाया जा सके।

उत्तर प्रदेश में भाजपा मार्च में बौद्ध सम्मेलन आयोजित करेगी। इसमें भाजपा की मदद अखिल भारतीय भिक्खु महासंघ करने वाला है। भाजपा दलित समाज, अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ अति पिछड़ा वर्ग को भी जोड़ने के लिए इनसे जुड़े संगठन को और मोदी की योजनाओं के साथ इनको भाजपा से जोड़ना चाहती है।

उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अपने अनुषांगिक संगठनों को हर मतदाता से जुड़ने का जिम्मा सौंपा है। युवा मोर्चा हर जाति के युवा से संपर्क करेगा तो महिला मोर्चा हर जाति की महिला से संपर्क करेगी। अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति मोर्चा भी हर घर दस्तक देगा।

प्रधानमंत्री मोदी का पूरा फोकस दलित, पिछड़ों और अति पिछड़ों पर है। प्रधानमंत्री मोदी के लिए पिछड़ा वर्ग कितना महत्व रखता है इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि मोदी सरकार ने इसी साल की शुरूआत में कैबिनेट सचिव राजीव गौबा के नेतृत्व में भारत सरकार के सचिवों की एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर दिया है जिसमें गृह मंत्रालय, सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय, जनजातीय कार्य मंत्रालय और कार्मिक मंत्रालय के सचिव भी शामिल हैं। यह समिति अति पिछड़ी जातियों की स्थिति का आंकलन करेगी और उसके बाद मोदी सरकार इनके लिए रिजर्वेशन कोटा विदिन कोटा भी दे सकती है।

भाजपा ने उन पिछड़ी जातियो को भी इस लोकसभा चुनाव में लक्षित करने की योजना बनाई है जिनकी संख्या कम है लेकिन जो किसी गैर भाजपा पार्टी के प्रतिबद्ध वोट बैंक के तौर पर नहीं जानी जाती। इन जातियों का राजनैतिक लाभ लेने के लिए मोदी ने 17 सितंबर 2023 को प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना की शुरूआत की थी जिसका लाभ लेने के लिए उत्तर प्रदेश से ही अब तक 75 लाख के करीब आवेदन आ चुके हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी मजबूत स्थिति को अजेय करने के लिए भाजपा ने जयंत चौधरी के साथ गठबंधन कर लिया है। पश्चिमी यूपी के 26 जिलों में फैले जाट मतदाताओं पर पकड़ मजबूत करने के लिए जयंत चौधरी जरूरी थे।

उत्तर प्रदेश की कुल पिछड़ी जातियों में जाटों का प्रतिशत 3.60 है। लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छह कमीश्नरी में जाट 18 से 20 प्रतिशत हैं। अब राष्ट्रीय लोकदल के एनडीए में शामिल होने के बाद भाजपा का आंकलन है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में न केवल जाट मतदाता भाजपा रालोद के पक्ष में एकजुट होगा बल्कि कुछ इलाकों में बना जाट मुस्लिम गठजोड़ भी बिखर जाएगा।

भाजपा उत्तर प्रदेश में छोटे दलों को साधने के साथ साथ अपने ही कई सांसदों के टिकट काटने का मन बना चुकी है। वरूण गांधी का पीलीभीत और उनकी मां मेनका गांधी का सुल्तानपुर से टिकट खतरे में है। इसके अलावा इलाहाबाद की सांसद रीता बहुगुणा जोशी के साथ 14 अन्य सांसदों के टिकट भी कटना लगभग तय है।

उत्तर प्रदेश संगठन को अमित शाह ने हर बूथ पर 51 प्रतिशत वोट शेयर की रणनीति पर काम करने को कहा है। अमित शाह खुद उत्तर प्रदेश संगठन की तैयारी को मॉनीटर कर रहे हैं और उत्तर प्रदेश के पूर्व संगठन महामंत्री सुनील बंसल अमित शाह की पूरी मदद कर रहे हैं। 370 सीटों का लक्ष्य लेकर चल रही भाजपा उत्तर प्रदेश में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। इसी कारण दिल्ली में 18 फरवरी को हुई भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अमित शाह को उत्तर प्रदेश पर विशेष ध्यान देने के लिए कहा है।

उत्तर प्रदेश में निश्चित ही भाजपा मजबूत स्थिति में है लेकिन प्रदेश की सभी 80 सीटें जीतने का दावा इतना भी सरल नहीं है। उत्तर प्रदेश में जिस तरीके से मोदी और शाह रणनीति तय कर रहे हैं, जातिगत समीकरण साधकर विपक्ष को ध्वस्त करने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं, उसके मुकाबले विपक्ष अपनी कुछ सीटों को बचाने के लिए जद्दोजहद करते हुए ही दिख रहा है। कांग्रेस अपनी पूरी उर्जा रायबरेली और अमेठी के लिए लगा रही है तो वहीं अखिलेश यादव अपनी पूरी ताकत यादव और मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर झोंक रहे हैं।

मोदी और शाह इस बात को जानते हैं कि भारत की राजनीति में आप कितना भी विकास का गुब्बारा फुला लो, वह तब तक उंचा नहीं उठेगा जब तक उसमें जाति की गैस न भरी हो। चुनावी गणित विकास के आंकड़ों से नहीं जातिगत समीकरणों से सधता है।

नेता जानते हैं कि सत्ता में पहुंचकर आर्थिक प्रगति और विकास का माल भी वोट की मंडी में जाति के सामने दम तोड़ देता है तो जाति को सामने कर चुनाव क्यों न लड़ा जाए? इसलिए प्रधानमंत्री मोदी को लोकसभा में कहना पड़ता है कि विपक्ष को उनके जैसा ओबीसी नहीं दिखता और राहुल गांधी को कहना पड़ता है कि मोदी जन्म से ओबीसी नहीं है।

 

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