मेरठ में समाजवादी पार्टी की अंतकर्लह के साइडइफैक्ट अब खुलकर सामने आ रहे हैं। मंगलवार को सपा के पुराने दिग्गज नेता और वर्तमान जिलाध्यक्ष जयवीर सिंह ने सपा छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। जयवीर के साथ जिला उपाध्यक्ष धर्मेंद्र मलिक ने भी भाजपा का पटका पहन लिया। जयवीर सिंह के भाजपा ज्वाइन करते ही 2 चिट्ठियां सामने आए हैं।
पहली चिट्ठी 11 जून की है। जिसे सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने लिखा है। प्रदेश अध्यक्ष ने 11जून को ही जयवीर सिंह को पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने के कारण पार्टी से तत्काल प्रभाव से निष्कासित करने का ऐलान कर दिया था। मानें तो जयवीर सिंह को 11 जून को ही पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था। उसके बाद उन्होंने भाजपा ज्वाइन किया।
दूसरी चिट्ठी उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति आयोग के उपाध्यक्ष रहे मुकेश सिद्धार्थ ने अपने पैड पर लिखी है। जिसमें उन्होंने जयवीर सिंह के भाजपा ज्वाइन करने को अपना फेलियर मानते हुए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से माफी मांगी है।
दैनिक भास्कर ने जयवीर सिंह से फोन पर बात की तो उन्होंने कहा कि मोदी, योगी की नीतियों और नीयत से प्रभावित हैं। इसलिए सपा छोड़कर भाजपा में आए हैं। आगे का राजनीतिक जीवन भाजपा के साथ तय करेंगे। उन्होंने कहा कि लंबे समय से भगवा पटका पहनने का मन बना चुके थे। लेकिन समाजवादी पार्टी के प्रति मोह होने के कारण यह साथ छूट नहीं रहा था। लेकिन निकाय चुनाव में जिस प्रकार पार्टी में आपसी फूट का नजारा देखा उसने मन को काफी ठेस पहुंचाई। इसलिए भाजपा ज्वाइन कर रहे हैं। स्वेच्छा से ये फैसला लिया है।
कहा कि वो जनसेवा करना चाहते हैं। जनसेवा भाजपा की नीति है उस पर काम करेंगे। जयवीर ने आगे ये भी कहा कि उन्हें किसी पद की लालसा नहीं हैं। अगर पद की लालसा होती तो वो सपा जैसी मुख्य विपक्षी पार्टी के जिलाध्यक्ष पद को नहीं छोड़ते। भाजपा में उन्हें किसी पद की इच्छा नहीं है, न किसी पद की चाहत वो रखते हैं। पार्टी से जुड़कर काम करना चाहते हैं। पार्टी जो जिम्मेदारी देगी उसे कर्तव्यनिष्ठा से पूरा करेंगे।
पार्टी छोड़ने की वजह बताते हुए कहा कि जिलाध्यक्ष रहते हुए भी मैं पार्टी परिवार को एकसूत्र में नहीं बांध सका। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मुझे जिम्मा सौंपा था कि आपसी मनमुटाव खत्म करुं। लेकिन उसे खत्म करने में, मैं असमर्थ रहा। कहा कि निकाय चुनाव में जिस तरह एक विधायक पार्टी के खिलाफ गतिविधियां करते रहे उसने बहुत आहत किया। विधायक ने सपा के कैंडिडेट के खिलाफ जाकर निर्दलीयों के लिए मंच से प्रचार किया। उनके लिए वोट मांगे। राष्ट्रीय अध्यक्ष के रोड शो में नहीं आए। रोड शो का दुष्प्रचार किया, उसे फ्लॉप कराने का प्रयास किया यह सब बहुत गलत रहा। यही वजह रही कि हम निकाय चुनाव हारे। टिकट से लेकर चुनाव प्रचार, मतदान, मतगणना में कहीं सपा विधायक पार्टी प्रतयाशी के लिए खड़े नहीं दिखे। मैं तमाम प्रयासों के बाद भी उन्हें साथ नहीं ला सका। उनके रवैय्ये से बहुत दुखी हूं, फेलियर महसूस करता हूं। इसलिए भाजपा में आने का मन बनाया।
अब मुकेश सिद्धार्थ की चिट्ठी में क्या वो पढ़िए
दूसरी चिट्ठी मुकेश सिद्धार्थ ने सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को लिखी है। जिसमें उन्होंने लिखा कि 11जून को ही उन्हें नरेश उत्तम पटेल सपा प्रदेश अध्यक्ष की तरफ से मेरठ में सपा जिलाध्यक्ष जयवीर सिंह को पार्टी से निष्कासित करने का पत्र मिल गया था। उसी दिन उन्हें पत्रकार वार्ता कर यह जानकारी मीडिया को देनी चाहिए थी। लेकिन निजी कारणों से वो प्रेसवार्ता कर जयवीर सिंह के निष्कासन को सार्वजनिक नहीं कर पाए। जिसका फायदा उठाकर जयवीर ने भाजपा नेताओं से सेटिंग कर भाजपा ज्वाइन कर ली। मुकेश सिद्धार्थ ने अखिलेश यादव से अपने इस कृत्य के लिए लिखित माफी भी मांगी है।
पार्टी में बंटे धड़ों को एक करने में रहे फेल
जयवीर सिंह को दोबारा जिलाध्यक्ष बनाने के बड़े कारण थे। जाट चेहरा होने के नाते पार्टी ने जाटों को साथ लाने का प्रयास किया था। सपा का निकाय चुनाव में भी सपा, रालोद गठबंधन था। उसका फायदा लेने के लिए जयवीर को लाए लेकिन पार्टी निकाय चुनाव बुरी तरह हारी। सबसे बड़ा कारण पार्टी में बंटे गुटों को एकसाथ लाने का काम जयवीर नहीं कर सके। जिलाध्यक्ष जैसे अहम पद पर होने के बावजूद पार्टी में उनका प्रभाव कहीं नजर नहीं आया। सपा में किठौर विधायक पूर्व मंत्री शाहिद मंजूर, शहर विधायक रफीक अंसारी का एक अलग धड़ा है। सरधना विधायक अतुल प्रधान पार्टी में होते हुए भी विरोधी खेमे में हैं।
दोनों खेमों में आपस में भारी मनभेद और मतभेद हैं। जयवीर सिंह इस मतभेदों को मिटा नहीं पाए। परिणाम कि सपा निगम चुनाव बुरी तरह हारी। लखनऊ में मेयर के टिकट के फाइनल होने में दोनों धड़ों में आपसी विरोध खुलकर दिखा। चुनाव प्रचार में दोनों विधायक कहीं पार्टी के लिए प्रचार करते नहीं दिखे। बल्कि इन्होंने निर्दलीयों के लिए वोट मांगे और पार्टी कैंडिडेट को हराने का काम किया। राष्ट्रीय अध्यक्ष के रोड शो में भी जयवीर सिंह दोनों विधायकों को साथ नहीं ला पाए। मतदान, मतगणना में भी दोनों धड़ों में विरोध दिखता रहा।
7 अप्रैल 2023 को सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने निकाय चुनाव से पहले कई नए जिलाध्यक्ष बनाए थे। तभी मेरठ में राजपाल सिंह की जगह जयवीर सिंह को जिलाध्यक्ष बनाया गया। उसी समय तय था कि जिलाध्यक्ष की राह मेरठ में आसान नहीं है। चुनौतियां बहुत हैं। न केवल विपक्ष की भूमिका का मेरठ में सही तरह से निर्वहन करना होगा बल्कि पार्टी के सभी धड़ों को एकसूत्र में बांधना होगा। यह इतना आसान नहीं है क्योंकि मुख्य रूप से तीन धड़ों के इर्द गिर्द घूमने वाली सपाई राजनीति में बाकी दो धड़े भी अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए हरसंभव कोशिश करेंगे। हालांकि जयवीर इस कोशिश में पूरी तरह विफल रहे।
पिछली बार भी जयवीर सिंह के जिलाध्यक्ष बनने की चर्चा थी, मगर 25 फरवरी 2018 को राष्ट्रोदय कार्यक्रम में उन्हें गणवेश पहनना भारी पड़ गया था। पार्टी मुखिया अखिलेश यादव ने उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया था। इसके बाद वह जिलाध्यक्ष पड़ की दौड़ से बाहर हो गए थे। हालांकि अगस्त 2018 में उनका निष्कासन खत्म हो गया था।
जयवीर सिंह साल 2002 से सपा की राजनीति में सक्रिय हैं। तमाम अहम पदों को संभाला। 2013 से 2017 तक जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन और दो बार डायरेक्टर भी रहे हैं। वह सैनी गांव के प्रधान भी रहे हैं। जयवीर सिंह को दूसरी बार जिलाध्यक्ष बनाया गया। इससे पहले वह जुलाई 2008 से अप्रैल 2017 तक इस पद पर रहे थे। पिछले करीब 9 माह से यहां कोई जिलाध्यक्ष और महानगर अध्यक्ष नहीं था।