मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता मिलने के आदेश पर गुरुवार को अलीगढ़ के मुस्लिम धर्मगुरु अधिवक्ता इफराहीम हुसैन ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर आभार जताया है। उन्होंने मुस्लिम क्रिमिनल लॉ में क्रिमिनल एलिमेंट जोड़ने की भी मांग की है।

अधिवक्ता हुसैन ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को कहा कि मुस्लिम समाज के लोग नशे में पत्नी को तलाक दे देते थे, इसके बाद पत्नी की जिंदगी खराब हो जाती थी।

उन्हें गुजारा भत्ता भी नहीं मिल पाता था। इसकी वजह से उनका जीवन यापन मुश्किल हो जाता था। उन्होंने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर मुस्लिम क्रिमिनल लॉ में क्रिमिनल एलिमेंट जोड़ने की भी मांग की।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में बुधवार(10 जुलाई) को बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं तलाक के बाद भी गुजारा भत्ता पाने की हकदार हैं।

कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत सभी धर्मों की तलाकशुदा महिलाएं गुजारा भत्ता के लिए अपील कर सकती हैं। यह फैसला तब आया जब तेलंगाना के एक मुस्लिम व्यक्ति ने तेलंगाना हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उसे अपनी पूर्व पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ता के तौर पर 10 हजार रुपया देने को कहा गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “महिलाओं को भरण-पोषण देना दान का मामला नहीं है, बल्कि यह विवाहित महिलाओं का मौलिक अधिकार है। यह ऐसा अधिकार है, जो भारत में धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक सीमाओं से परे है। यह ऐसा अधिकार है, जो सभी विवाहित महिलाओं के लिए लैंगिक समानता और वित्तीय सुरक्षा के सिद्धांत को और मजबूत करता है।”

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, “अब समय आ गया है कि भारतीय पुरुष अपनी पत्नियों के त्याग को पहचानें। बैंक में उनके संयुक्त खाते खोलें। एटीएम तक उनकी पहुंच बढ़ाएं। कुछ पति इस बात से अनजान हैं कि उनकी गृहिणी पत्नी भावनात्मक रूप से और अन्य तरीकों से उन पर निर्भर है। पति के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी पत्नी को नियमित रूप से वित्तीय सहायता प्रदान करे।”

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