मुजफ्फरनगर के ग्रीनलैंड मॉडर्न जूनियर हाई स्कूल में चल रहे किशोर बालक एवं बालिका चरित्र निर्माण योग शिविर में योगाचार्य सुंदर पाल सिंह आर्य ने कहा कि संसार का समस्त ज्ञान वेदों के अंदर निहित है। ऋग्वेद संसार की सबसे प्राचीनतम पुस्तक है। वेद का पढ़ना पढ़ाना और सुनना सुनाना हम सब का परम कर्तव्य है। योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना।
अर्थात आत्मा और परमात्मा का मेल योग है। महर्षि पतंजलि के अनुसार योगश्चित्तवृत्ति निरोध: अर्थात चित्त की वृत्तियों को रोकना योग है। योग को समाधि भी कहते हैं। जो साधक धारणा ,ध्यान और समाधि लगाता है वह परम योगी कहलाता है। आज वर्षा होने के बावजूद भी काफी संख्या में किशोर बालक और बालिकाओं ने चरित्र निर्माण योग शिविर में भाग लिया। किशोर बालक और बालिकाओं में योग के प्रति जागरूकता पैदा करना ही हमारा परम कर्तव्य है।
योग सुखी जीवन जीने की एक ऐसी कला है जिसको नियमित रूप से प्रतिदिन करने से ही लाभ मिलता है। मात्र कुछ दिन योग कर लेने से कोई लाभ नहीं होता। जिस प्रकार हम प्रतिदिन भोजन करते हैं। ठीक इसी प्रकार हमें प्रतिदिन योगाभ्यास भी करना चाहिए। मेरा सरकार से अनुरोध है कि प्रत्येक विद्यालय में योग की शिक्षा को अनिवार्य कर देना चाहिए।
योग की शिक्षा से ही समाज में मानवीय मूल्यों की रक्षा हो सकती है। योग शिक्षक यज्ञ दत्त आर्य ने ओम ध्वनि और गायत्री मंत्र से योग साधना प्रारंभ करवाई। अंकुर मान ने बालक और बालिकाओं को अनेक आसन और प्राणायाम कराए। डॉक्टर जीत सिंह तोमर की ओर से बालकों को प्रसाद वितरित किया गया।
कल बच्चों को फीडबैक फॉर्म दिए जाएंगे जिनको अभिभावकों के द्वारा भरवाया जाएगा । ताकि पता चल सके कि चरित्र निर्माण योग शिविर का बच्चों के व्यवहार, खानपान और दिनचर्या पर कैसा प्रभाव पड़ा है?