पूर्व केंद्रीय मंत्री और दक्षिण मुंबई से पूर्व सांसद मिलिंद देवरा ने कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़ आखिर एकनाथ शिंदे की शिवसेना में शामिल हो गए।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और दक्षिण मुंबई से पूर्व सांसद मिलिंद देवरा रविवार को कांग्रेस से इस्तीफा देने के साथ ही उन युवा नेताओं की सूची में शामिल हो गए, जिन्होंने अन्य पार्टियों, मुख्य रूप से भाजपा में नयी पारी शुरू करने के लिए इसे छोड़ दिया।
यह इस्तीफा उन युवा नेताओं की अनसुनी चिंताओं की निरंतर गाथा का भी संकेत देता है, जिन्हें एक समय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का करीबी माना जाता था।
नेताओं के पार्टी छोड़ने की हर घटना गांधी परिवार और पार्टी के निचले स्तर के बीच बढ़ती दूरी और नयी पीढ़ी को कमान सौंपने की अनिच्छा से उपजे असंतोष को उजागर करती रही है।
देवरा के करीबी सूत्रों ने कहा कि उन्होंने ‘‘बहुत लंबे और निरर्थक इंतजार’’ के बाद पार्टी छोड़ दी। सूत्रों ने कहा कि पूर्व लोकसभा सदस्य अपनी ही पार्टी से यह आश्वासन नहीं पा सके कि उन्हें आगामी आम चुनाव में मुंबई दक्षिण से चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा, जिस सीट का प्रतिनिधित्व दशकों से उनका परिवार करता रहा है।
देवरा के सहयोगियों ने कहा, ‘‘शिवसेना (यूबीटी) खुले तौर पर मुंबई दक्षिण सीट पर दावा कर रही है और कांग्रेस मिलिंद देवरा को सीट का आश्वासन देने में असमर्थ रही। एक युवा नेता का राजनीतिक भविष्य अनिश्चितता में था और कोई समाधान नहीं था।’’
देवरा ने कांग्रेस के साथ अपने परिवार का 55 साल पुराना रिश्ता खत्म कर दिया है। उनके दिवंगत पिता मुरली देवरा एक कद्दावर शख्सियत थे और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में पेट्रोलियम मंत्री थे।
हालांकि, मिलिंद देवरा ने शिवसेना (शिंदे गुट) में शामिल होने के बाद कहा, ‘‘यह किसी सीट के मुद्दे के कारण नहीं हुआ है। मुझे लगता है कि कांग्रेस अब वैसी पार्टी नहीं रही, जैसी उस वक्त थी जब मैं 2004 में इसमें शामिल हुआ था। मेरी इच्छा समाज के प्रति सकारात्मक योगदान देने की है।’’
देवरा ने कहा, ‘‘मुझे सुबह से बहुत सारे फोन आ रहे हैं कि मैंने कांग्रेस क्यों छोड़ी। मैं पार्टी के सबसे चुनौतीपूर्ण दशक के दौरान पार्टी का पैरोकार था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, वर्तमान कांग्रेस और उस कांग्रेस में अंतर है, जब मेरे पिता (मुरली देवरा) 1968 में शामिल हुए थे।’’
पुराने मुद्दों का समाधान नहीं होने और पार्टी के भीतर गुटबाजी के कारण राहुल गांधी के करीबी कई होनहार नेताओं को पार्टी छोड़नी पड़ी।
यह सूची लंबी है और राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट इसके अपवाद हैं, जो शीर्ष नेतृत्व द्वारा किए गए वादे पूरे नहीं होने के बावजूद कांग्रेस में बने रहे। उन्होंने 2020 में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत कर दी थी, लेकिन बाद में उन्होंने अपने तेवर नरम कर लिये।
पायलट ने रविवार को देवरा के पार्टी छोड़ने पर कहा, ‘‘हर कोई अपनी पार्टी और विचारधारा चुनने के लिए स्वतंत्र है, केवल समय ही बताएगा कि उनका निर्णय सही था या नहीं।’’
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई में गुटबाजी को लेकर इतने धैर्यवान नहीं थे। उन्होंने मार्च 2020 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने के लिए कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था।
सिंधिया ने कहा था कि वह वरिष्ठ नेता कमलनाथ से मिलने वाले अपमान को अब और बर्दाश्त नहीं कर सकते। जून 2021 में संप्रग के एक अन्य पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद ने लोगों के साथ पार्टी की बढ़ती दूरियों का हवाला देते हुए कांग्रेस छोड़ दी।
इसके बाद पलायन का सिलसिला शुरू हुआ, जिसमें प्रियंका चतुर्वेदी अविभाजित शिवसेना में शामिल हो गईं, गुजरात इकाई के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल भाजपा में चले गए, महिला कांग्रेस की पूर्व प्रमुख सुष्मिता देव टीएमसी से जुड़ गईं, जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री आर पी एन सिंह, पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रमुख सुनील जाखड़ और पार्टी प्रवक्ता जयवीर शेरगिल भी भाजपा में शामिल हो गए।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के समय कांग्रेस की असम इकाई के कद्दावर नेता हिमंत विश्व शर्मा के पार्टी छोड़ने के साथ भाजपा में जाने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह वास्तव में कभी नहीं रुका और कई बड़े नेताओं के इस्तीफे जारी रहे, यहां तक कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह भी 2022 में पंजाब चुनाव से पहले व्यक्तिगत अपमान का हवाला देते हुए भाजपा में चले गए।
देवरा के एक सहयोगी ने उनके फैसले के बारे में बताते हुए कहा, ‘‘राहुल गांधी से मिल पाना असंभव है। यह स्पष्ट रूप से एक अलगाव है और व्यक्ति घुटन महसूस करता है।’’
इसी तरह के विचार पहले शर्मा सहित अधिकांश नेताओं द्वारा पार्टी से बाहर निकलने के समय व्यक्त किए गए थे। राहुल गांधी का व्यक्तिगत रूप से लंबे समय से यह मानना रहा है कि जो लोग पद छोड़ना चाहते हैं, वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं।
कांग्रेस नेतृत्व यह कहता रहा है कि ऐसे नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, जो वैचारिक लड़ाई में भाजपा से मुकाबला करने की क्षमता नहीं रखते। उन्होंने कहा, ‘‘एक बार माहौल हमारे पक्ष में हो जाए, तो ये सभी नेता वापस लौट आएंगे। उनके लिए यह पार्टी से ऊपर व्यक्तिगत मामला है।’’
कांग्रेस ने देवरा के इस्तीफे के समय पर भी सवाल उठाया, जो राहुल गांधी द्वारा रविवार को मणिपुर से मुंबई तक अपनी महत्वाकांक्षी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ शुरू करने से कुछ घंटे पहले आया।
देवरा के पार्टी छोड़ने के ठीक बाद भाजपा की आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘कांग्रेस को न्याय यात्रा शुरू करने के बजाय पहले अपने नेताओं को न्याय देना चाहिए।’’
शेरगिल ने हमला करते हुए कहा कि कांग्रेस की ‘तोड़ो यात्रा’ शुरू हो गई है। भाजपा नेता ने कहा, ‘‘पहले, असम के महासचिव (अपूर्व भट्टाचार्य) ने (कांग्रेस से) इस्तीफा दे दिया और अब मिलिंद देवरा ने भी इस्तीफा दे दिया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘’राहुल गांधी को पार्टी और उसके नेताओं के साथ किए गए अन्याय के बारे में जवाब देना होगा।’’
कांग्रेस ने इस्तीफे को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि एक मिलिंद देवरा जाता है, लेकिन ‘‘हमारे संगठन और विचारधारा में विश्वास करने वाले लाखों मिलिंद बने रहते हैं।’’