प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केवल एक अपराध के आधार पर किसी व्यक्ति के खिलाफ उत्तर प्रदेश गुंडा नियंत्रण अधिनियम, 1970 के तहत नोटिस जारी कर कार्यवाही करने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इस न्यायालय के पूर्व आदेशों के बावजूद राज्य सरकार ने उक्त अधिनियम की प्रयोज्यता के संबंध में जिला मजिस्ट्रेटों को कोई दिशा निर्देश जारी नहीं किया है, जिसके कारण वे और उनके अधीनस्थ लगातार इस अधिनियम के तहत अवैध नोटिस जारी कर रहे हैं। कोर्ट का मानना है कि इस तरह की प्रवृत्ति ठीक नहीं है। इसे कहीं से भी न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है। कोर्ट ने विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि किसी व्यक्ति को केवल एक या दो कृत्यों के आधार पर गुंडा नहीं ठहराया जा सकता है। इसके लिए ठोस कारण होने चाहिए।

उसे केवल तभी गुंडा माना जा सकता है जब वह आदतन अपराधी हो। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह (प्रथम) की खंडपीठ ने अपर जिला मजिस्ट्रेट (न्यायिक), हापुड़ द्वारा अधिनियम, 1970 की धारा 3/4 के तहत पारित कारण बताओ नोटिस के खिलाफ दाखिल रवि की याचिका पर सुनवाई के दौरान की, साथ ही कोर्ट ने राज्य को 2 महीने के भीतर 20 हजार रुपए जुर्माना याची को देने का आदेश दिया है।

कोर्ट ने विवादित नोटिस रद्द करते हुए सचिव, गृह विभाग,यूपी सरकार,लखनऊ को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए कि राज्य की शक्तियों का प्रयोग करने वाले लोक सेवक कानून की सीमा में रहकर विशेष अधिनियमों का प्रयोग करें अन्यथा उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही हो सकती है।बता दें कि याची को आईपीसी, गोवध निवारण अधिनियम और महामारी रोग अधिनियम, 1987 की विभिन्न धाराओं के तहत मामले में फंसाया गया था।

 

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