यात्रियों को बसों के लिए इन दिनों लंबा इंतजार करना पड़ रहा है और यह इंतजार आने वाले दिनों में और लंबा होने वाला है।

दरअसल इसकी वजह इस महीने के आखिर तक सड़कों से मियाद पूरी कर चुकी डीटीसी की बसों का हटना है। डीटीसी ढाई हजार बसों में से करीब 80-90 फीसद बसें सड़कों से हट जाएंगी।

यह वह बसें हैं जिनकी मियाद पिछले साल सितम्बर-अक्टूबर में ही पूरी हो गई थी, लेकिन अरविंद केजरीवाल की सरकार ने विधानसभा चुनाव को देखते हुए छह महीने का एक्सटेंशन दे दिया था। अब यह समय भी मार्च में पूरा होने जा रहा है।

ऐसे में इन बसों का सड़कों से हटना तय बताया जा रहा है। हालांकि दिल्ली सरकार ने घोषणा की है कि इसी माह वह एक हजार इलेक्ट्रिक बसें सड़कों पर उतारेगी।

डीटीसी कर्मचारी एकता यूनियन के महामंत्री मनोज शर्मा की मानें तो डीटीसी के बेड़े में चल रही ग्रीन और रेड एसी वाली बसों का समय पूरा हो चुका है। अब उन्हें किसी भी सूरत में एक्सटेंशन मिलना मुश्किल है।

इन बसों के हटने के बाद डीटीसी के बेड़े में सिर्फ अशोक लिलैंड वाली बसें ही रह जाएंगी। इसके अलावा केन्द्र सरकार से फेमा के तहत मिली इलेक्ट्रिक बसें रह जाएंगी।

उन्होंने बताया कि मार्च में धीरे-धीरे करीब दो हजार बसों के सड़कों से हटने से यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। अब भी यात्रियों को बस स्टैंड पर घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। इसके बाद कलस्टर बसों के भरोसे ही दिल्ली के यात्रियों को रहना होगा।

उन्होंने बताया कि मोहल्ला बसें तो आ गई, लेकिन यह अभी डिपो में खड़ी हैं। इनका परिचालन किलोमीटर स्कीम के तहत होगा, इसलिए इससे सरकार को किसी भी तरह का कोई फायदा नहीं होने वाला है। किलोमीटर स्कीम के तहत जो बसें चलती हैं, उसके मालिक /संचालक कभी भी यात्रियों को बस में बैठाने पर ध्यान नहीं देते।

उनकी मंशा सिर्फ किलोमीटर बढ़ाने की होती है। मनोज शर्मा की मानें तो केजरीवाल सरकार ने दो-तीन साल पहले दो हजार से अधिक युवाओं को कंडक्टर और बस चालक की ट्रेगिंग दी थी, लेकिन उन्हें अभी तक बस चलाने के लिए नहीं बुलाया गया। यह लोग इंतजार में बैठे हैं।

उन्होंने कहा कि यूनियन को अब नई सरकार से उम्मीद जगी है कि भाजपा सरकार डीटीसी कर्मचारियों के बारे में सकारात्मक निर्णय लेगी।

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