भारत सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए वित्त विधेयक 2025 में संशोधन कर 6 प्रतिशत समानिकरण उपकर (Equalisation Levy – EL) को हटाने का प्रस्ताव दिया है। यह कर ऑनलाइन विज्ञापन सेवाओं पर लागू होता था और इसे आमतौर पर “गूगल टैक्स” कहा जाता था। इस फैसले से गूगल, अमेजन और मेटा जैसी अमेरिकी कंपनियों को बड़ा फायदा होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत सरकार का यह कदम अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव को कम करने और द्विपक्षीय व्यापार समझौतों में लचीलापन दिखाने के उद्देश्य से लिया गया है। समानिकरण उपकर 2016 में लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य विदेशी डिजिटल सेवा प्रदाताओं और भारतीय कंपनियों के बीच कर संतुलन बनाना था। इसके तहत, अगर कोई भारतीय कंपनी या व्यक्ति किसी विदेशी डिजिटल सेवा प्रदाता (जैसे Google, Meta, Amazon) को 1 लाख रुपये से अधिक का भुगतान करता था, तो उसे 6% कर देना पड़ता था।
अमेरिका के दबाव की भूमिका
2020 में भारत ने ई-कॉमर्स कंपनियों पर 2% समानिकरण उपकर लगाया था, लेकिन अमेरिका ने इसे भेदभावपूर्ण बताते हुए विरोध किया। 2024 में भारत ने 2% कर हटा दिया था, लेकिन 6% कर अभी भी लागू था। अब, अमेरिका की व्यापार नीतियों और संभावित टैरिफ वॉर से बचने के लिए भारत ने इसे भी हटाने का निर्णय लिया है।
वैश्विक कर सुधारों के तहत लिया गया फैसला
OECD/G20 समावेशी ढांचे के तहत 2021 में अमेरिका, भारत और अन्य देशों ने डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए एक वैश्विक कर प्रणाली पर सहमति व्यक्त की थी। इस निर्णय के बाद भारत अब अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता को सुचारू करने और संभावित व्यापार प्रतिबंधों से बचने के लिए यह कर समाप्त कर रहा है।
इस फैसले का असर
अमेरिकी टेक कंपनियों को राहत
गूगल, अमेजन और मेटा जैसी कंपनियों को अब भारत में डिजिटल सेवाओं पर अतिरिक्त कर नहीं देना पड़ेगा, जिससे वे भारतीय बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकेंगी।
भारत का यह कदम अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता में सकारात्मक संकेत भेजेगा और भविष्य में द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में मदद करेगा।
डिजिटल अर्थव्यवस्था को मिलेगा बढ़ावा
इस निर्णय से भारतीय स्टार्टअप्स और कंपनियों को भी फायदा होगा, क्योंकि वे अब विदेशी डिजिटल सेवाओं का उपयोग कम लागत पर कर सकेंगे। AKM Global के टैक्स पार्टनर अमित महेश्वरी के अनुसार, यह निर्णय भारत और अमेरिका के व्यापारिक संबंधों को नई दिशा देने वाला साबित हो सकता है। हालांकि, यह देखना बाकी है कि अमेरिका की प्रतिक्रिया इस पर कैसी होती है।