नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला का एक वीडियो सोशल मीडिया पर बहुत सुर्खियां बटोर रहा है। वायरल वीडियो में उन्हें जम्मू और कश्मीर के कटरा में भक्ति गीत ‘ढूंढो मोरे राम’ गाते हुए देखा जा सकता है।
सोशल मीडिया पर यह वीडियो बहुत तेजी से शेयर हो रहा है और कई लोग वीडियो पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। लेकिन शायद लोगों को याद नहीं कि पूर्व में फारूक हिंदू धर्म के बारे में कई बार घृणित टिप्पणियां कर चुके हैं।
मार्च 2023 में फारूक अब्दुल्ला ने एक बयान दिया जिसमें उन्होंने दावा किया कि श्रीराम को लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए अल्लाह ने भेजा था। मार्च 2023 में दिवंगत हुए पाकिस्तानी मौलाना असर की कुरान में की गई व्याख्या का हवाला देते हुए अब्दुल्ला ने यह दावा किया था और कहा था, “भगवान राम को अल्लाह ने मनुष्यों को उपदेश देने और उन्हें सही रास्ते पर ले जाने के लिए भेजा था।”
उस समय पर उन्होंने यह भी दावा किया कि आम लोगों का ध्यान भटकाने के लिए चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन किया जाएगा। अब्दुल्ला ने राजनीतिक लाभ के लिए भगवान राम के नाम का उपयोग करने के लिए भाजपा की आलोचना भी की थी।
फरवरी 2023 में फारूक अब्दुल्ला ने सरकार पर डीलिमिटेशन और चुनावों के बाद राज्य का दर्जा बहाल करने के माध्यम से जम्मू और कश्मीर को हिंदू-बहुल राज्य में बदलने का प्रयास करने का आरोप लगाया था। अब्दुल्ला का आरोप गृह मंत्री अमित शाह के जम्मू और कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करने के बयान के जवाब में आया, जिसके बारे में उन्होंने दावा किया कि जम्मू और कश्मीर को छोटा किया जाएगा और पूरी तरह से बहाल नहीं किया जाएगा।
अब्दुल्ला ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार को लगता है कि लोग मूर्ख हैं और डीलिमिटेशन के पीछे उनका मकसद जम्मू और कश्मीर को हिंदू-बहुल राज्य में बदलना है। गौरतलब है कि 2019 में मोदी सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का फारूक ने कड़ा विरोध किया था और सरकार पर ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ की शर्तों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था।
अक्टूबर 2022 में फारूक अब्दुल्ला ने एक और विवादित बयान दिया जिसमें उन्होंने कहा कि “यह (हिंदुओ पर हमले) कभी नहीं रुकेंगे जब तक न्याय नहीं किया जाता है। इससे पहले उन्होंने (भारत सरकार) कहा कि अनुच्छेद 370 के कारण ऐसी हत्याएं हुईं, लेकिन अब यह निरस्त हो गई है, तो इस तरह की हत्याएं क्यों नहीं रुक गईं? कौन जिम्मेदार है?”
उन्होंने कश्मीर में हुई हिंसा के लिए अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को जिम्मेदार ठहराया। उनका कहना था कि इन हत्याओं को रोकने के लिए कश्मीरी मुसलमानों के साथ न्याय किया जाना चाहिए। दरअसल, अक्टूबर 2022 में अब्दुल्लाह ने ये बयान तब दिया जब 56-वर्षीय पूरण कृष्ण भट की शोपियां में उनके घर पर आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
नवंबर 2018 में फारूक अब्दुल्ला ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने की आवश्यकता पर सवाल उठाते हुए कहा, “आज, धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक भारत को देखें। आप उन मुद्दों पर नहीं लड़ रहे हैं जो लोगों के लिए मायने रखते हैं। आप राम के लिए लड़ रहे हैं। क्या राम स्वर्ग से आएंगे और किसानों को कुछ बेहतर देंगे? या बेरोजगारी एक दिन में गायब हो जाएगी क्योंकि राम आ रहे हैं। वे लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं।”
अब्दुल्ला ने किसान कल्याण और बेरोजगारी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान देने के बजाय मंदिर निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने पर अपना गुस्सा प्रकट किया था। हालांकि अब्दुल्ला को करारा जवाब देते हुए जनता दल (यूनाइटेड) नेता पवन वर्मा ने उनसे हिंदुओं को उपदेश न देने की सलाह दी। साथ ही पवन वर्मा ने यह भी कहा, “वह (फारूक अब्दुल्ला) कौन होते हैं यह कहने वाले कि हमें राम मंदिर की जरूरत नहीं है?”
1990 के कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार में फारूक अब्दुल्ला की भूमिका विवाद और जांच का विषय रही है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, फारूक अब्दुल्ला को कई कश्मीरी पंडितों द्वारा 7 नवंबर, 1986 से 18 जनवरी, 1990 तक उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान हिंदुओं पर किए गए अत्याचारों के लिए जिम्मेदार एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में देखा गया है।
आरोप हैं कि अब्दुल्ला के प्रशासन ने स्थिति पर नियंत्रण खो दिया, जिससे कश्मीरी हिंदुओं के लिए सुरक्षा का माहौल बिगड़ गया। इसके अलावा, ऐसे दावे भी हैं कि अब्दुल्ला ने 1990 में कश्मीरी पंडितों की क्रूर हत्याओं से दो दिन पहले इस्तीफा दे दिया था, जो इस ओर इशारा करता है कि कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार की योजना से वे अवगत थे।
फारूक अब्दुल्ला और राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 1989 में 70 पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवादियों को रिहा किया था, जिन्होंने बाद में कश्मीरी हिंदुओं के खिलाफ नरसंहार का नेतृत्व किया था। यह जानकारी जम्मू और कश्मीर के पूर्व पुलिस महानिदेशक शेष पॉल वैद ने 16 मार्च, 2022 को एक ट्वीट में दी थी।
इन आतंकवादियों की रिहाई एक विवादास्पद निर्णय था, जिसने कश्मीर में हिंसा को बढ़ाने और क्षेत्र से कश्मीरी पंडितों को भागने पर मजबूर करने का काम किया। अपने ट्वीट में वैद ने पूछा, “क्या यह 1989 की केंद्र सरकार की जानकारी के बिना संभव था?” उन्होंने जिन आतंकवादियों का जिक्र किया उनमें त्रेहगाम के मोहम्मद अफजल शेख, रफीक अहमद अहंगर, मोहम्मद अयूब नजर, फारूक अहमद गनई, गुलाम मोहम्मद गुजरी, फारूक अहमद मलिक, नजीर अहमद शेख और गुलाम मोहि-उद-दीन तेली शामिल थे।