सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (06 अक्टूबर) को बिहार सरकार को उसके ऐतिहासिक जाति सर्वेक्षण के आधार पर कार्रवाई करने या अधिक डेटा जारी करने से रोकने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, ‘बिहार को और ज्यादा जाति-जनगणना डेटा जारी करने से हम नहीं रोक सकतेस हैं।’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह देखते हुए कि अधिकांश नीतिगत निर्णय डेटा पर आगे बढ़ते हैं और अंतरिम उपाय में सरकार को निर्णय लेने से नहीं रोका जा सकता है।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ ने पटना हाई कोर्ट के 1 अगस्त के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर औपचारिक नोटिस जारी किया, जिसने राज्य सरकार को जाति जनगणना करने की अनुमति दी थी। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई तीन महीने बाद जनवरी में तय की है।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से अपना जवाब रिकॉर्ड पर रखने को कहा, हालांकि उसने सरकार पर रोक लगाने के लिए कोई अंतरिम निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया है।

पीठ ने वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह से कहा कि, ‘हाई कोर्ट का फैसला काफी विस्तृत है। आखिरकार, सभी नीतियां डेटा पर आगे बढ़ती हैं। अपराजिता सिंह बिहार जाति सर्वे के खिलाफ याचिका डालने वाली याचिकाकर्ताओं में से एक हैं। अपराजिता सिंह ने जाति सर्वेक्षण में डेटा के संग्रह को गोपनीयता का उल्लंघन और राज्य सरकार की विधायी शक्ति से परे बताया है।

अदालत ने आगे बताया कि इस मामले में विवादास्पद मुद्दों में से एक डेटा के टूटने से संबंधित है और इसमें से कितना हिस्सा राज्य सरकार द्वारा सार्वजनिक किया जा सकता है।

बता दें कि बिहार सरकार अब व्यावहारिक रूप से भूमि और वाहन स्वामित्व, शिक्षा, आय स्तर और रोजगार की स्थिति जैसे सामाजिक-आर्थिक मापदंडों पर एकत्र किए गए डेटा के अगले बैच को जारी करने की योजना बना रही है।

 

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