कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में बलात्कार और हत्या की शिकार 31 वर्षीय प्रशिक्षु डॉक्टर के मामले में आज फैसला आने की उम्मीद है, जिससे पूरे देश में आक्रोश और विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। पिछले साल 9 अगस्त को हुई इस दुखद घटना ने चिकित्सा समुदाय को झकझोर कर रख दिया है और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों के लिए बेहतर सुरक्षा की व्यापक मांग की है।

सीबीआई की जांच और साक्ष्य

कोलकाता पुलिस से मामले को अपने हाथ में लेने वाली केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने विश्वास व्यक्त किया है कि मुख्य आरोपी संजय रॉय को दोषी ठहराया जाएगा। मामले की सुनवाई सियालदाह कोर्ट में होगी, जहां जज अनिरबन दास सीबीआई की पहली चार्जशीट के आधार पर फैसला सुनाएंगे।

13 अगस्त को सीबीआई द्वारा जांच का जिम्मा संभालने के बाद से ही जांच जारी है, जिसमें 120 से अधिक गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं और 66 दिनों तक बंद कमरे में सुनवाई की गई है। सीबीआई ने संजय रॉय की अपराध में संलिप्तता को स्थापित करने के लिए डीएनए और विसरा जैसे जैविक नमूनों सहित पर्याप्त सबूत पेश किए। पीड़िता के शरीर से लिए गए डीएनए नमूने रॉय के डीएनए से मेल खाते पाए गए और अपराध स्थल से जैविक सबूतों ने सीबीआई के मामले का समर्थन किया।

एजेंसी ने आगे दावा किया कि पीड़िता ने हमले के दौरान अपनी जान बचाने के लिए बहादुरी से लड़ाई लड़ी, जिससे रॉय के शरीर पर पाँच अलग-अलग चोटें आईं। मेडिकल रिपोर्ट ने पुष्टि की कि पीड़िता की मौत हाथ से गला घोंटने से हुई और उसके शरीर पर क्रूर हमले के निशान थे, जिसमें उसकी आँखों, मुँह और निजी अंगों से गंभीर रक्तस्राव शामिल था। राष्ट्रीय नतीजे और सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप इस मामले ने पूरे पश्चिम बंगाल में विरोध प्रदर्शनों के साथ राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया, जब पीड़िता का शव अस्पताल के अंदर एक सेमिनार हॉल में अर्ध-नग्न अवस्था में पाया गया।

डॉक्टरों और महिला अधिकार समूहों के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए, जिसमें पीड़िता के लिए न्याय और चिकित्सा कर्मचारियों के लिए बेहतर सुरक्षा की मांग की गई। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने जांच को सीबीआई को सौंप दिया, जिसने संजय रॉय को मामले में एकमात्र मुख्य आरोपी के रूप में नामित करते हुए आरोप पत्र दायर किया। इसके अलावा, दो पूर्व अधिकारियों- पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और स्थानीय पुलिस स्टेशन के पूर्व अधिकारी अभिजीत मंडल को सबूतों से छेड़छाड़ करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। हालांकि, बाद में सीबीआई द्वारा 90 दिनों के भीतर पूरक आरोपपत्र दाखिल करने में विफल रहने के बाद दोनों को डिफ़ॉल्ट जमानत दे दी गई।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया और देश भर में चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा पर चिंता व्यक्त की। इसके कारण देश भर में डॉक्टरों की सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया गया।

राजनीतिक नतीजे

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली सरकार को मामले से निपटने के तरीके को लेकर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा, जिसके चलते पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन जारी रहे। इस अशांति के कारण चल रहे विरोध प्रदर्शनों को शांत करने के प्रयास में कोलकाता पुलिस आयुक्त सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों का तबादला कर दिया गया।

नवंबर 2023 में शुरू होने वाला मुकदमा, पीड़ित के माता-पिता, फोरेंसिक विशेषज्ञों और सहकर्मियों सहित गवाहों की पहचान की रक्षा के लिए एक बंद अदालत कक्ष में चलाया गया। मुकदमे के दौरान कुल 50 गवाहों ने बयान दिए।

 

समापन और भविष्य के उपाय

आज फैसला आने की उम्मीद है, कई लोग न्याय की उम्मीद कर रहे हैं, क्योंकि इस मामले ने डॉक्टरों और चिकित्सा पेशेवरों के लिए अधिक सुरक्षा और संरक्षण की आवश्यकता को उजागर किया है। इस मुकदमे के परिणाम को स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की सुरक्षा चिंताओं और देश भर में महिलाओं की सुरक्षा के लिए मजबूत कानूनी उपायों की आवश्यकता दोनों को संबोधित करने में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जाता है।

आरजी कर मेडिकल कॉलेज में प्रशिक्षु डॉक्टर के दुखद मामले का स्थायी प्रभाव जारी है, और इसके बाद महिलाओं की सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की सुरक्षा और कानूनी प्रक्रिया की अखंडता पर महत्वपूर्ण चर्चाएँ शुरू हो गई हैं। आज अदालत का फैसला पूरे भारत में न्याय और चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण क्षण होगा।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Verified by MonsterInsights