भारत और पाकिस्तान दोनों ही परमाण संपन्न देश हैं। अभी दोनों देशों के बीच तनाव चल रहा है, ऐसे में कई प्रकार के खतरों की आशंका बढ़ जाती है। इसमें परमाणु हमले के खतरे को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। इस कारण हमें हर तरीके रेडी रहना चाहिए। दरअसल परमाणु विस्फोट के बाद सबसे खतरनाक किरणें निकलती हैं, जिसे रेडिएशन के नाम से जाना जाता है। विस्फोट से ज्यादा खतरनाक ये रेडिएशन होता है। ये किरणें शरीर को गंभीर नुकसान पुहंचाती हैं। ये तीन प्रकार ही होती है। जो अल्फा, बीटा और गामा नाम से जानी जाती है।

क्या होता है रेडिएशन?

परमाण विस्फोट से निकलने वाली अल्फा, बीटा और गामा रेज ही रेडिएशन का मुख्य हिस्सा होती हैं। इनमें सबसे भारी अल्फा रेज होती हैं, जो डायरेक्ट तो शरीर के अंदर नहीं जा पाती हैं, लेकिन अगर इनका खा लिया जाए या सांस के माध्यम से अंदर ले लिया जाए तो ये बड़ी समस्या का कारण बन सकती हैं।दूसरे नंबर पर बीटा रेज आती हैं। ये रेज स्किन को बर्न कर सकती है, लेकिन पतली कपड़े की दीवार इन्हें रोक सकती है।

इसमें तीसरी और सबसे खतरनाक गामा रेज होती हैं। जो शरीर में गहरे तक जा सकती हैं और इन्हें रोकने के लिए मोटी कंक्रीट या लेड की दीवार चाहिए। इसके अलावा, फॉलआउट भी होता है। यह रेडियोएक्टिव धूल है जो हवा में फैलती है और पहले कुछ घंटों में बहुत खतरनाक होती है।

परमाण हमले के बाद क्या करें?

परमाणु हमले के बाद रेडिएशन से बचने के लिए तीन चीजें समय, दूरी और बचाव सबसे जरूरी हैं। इसका मतलब है कि रेडिएशन के संपर्क में कम से कम समय बिताएं, विस्फोट वाली जगह से जितना हो सके उतना दूर रहें और अपने आश्रय के लिए मोटी दीवारों वाली जगह का इंतजाम करें। वैज्ञानिकों के अनुसार रेडिएशन का असर समय के साथ कम होता जाता है। पहले 24 से 48 घंटे सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं क्योंकि रेडियोएक्टिव चीजें तेजी से खत्म होती हैं। दो दिन बाद रेडिएशन का स्तर काफी कम हो जाता है इसलिए कम से कम दो दिन तक किसी सुरक्षित जगह पर रुकना जरूरी होता है। अगर बाहर जाना पड़े तो जल्दी से काम खत्म करके वापस आ जाएं।

विस्फोट से दूरी भी बहुत मायने रखती है। अगर आप विस्फोट से 10-20 किलोमीटर दूर हैं तो तुरंत का खतरा कम होता है लेकिन फॉलआउट हवा के साथ दूर तक फैल सकता है। इस कारण हवा की दिशा का ध्यान रखें और फॉलआउट वाले इलाके से बचें। सरकारी रेडियो या न्यूज सुनकर अपडेट लेते रहें। रेडिएशन से बचने का सबसे अच्छा तरीका मोटी चीजों का इस्तेमाल करना है। कंक्रीट, स्टील या मिट्टी की मोटी परत रेडिएशन को रोक सकती है। किसी इमारत के तहखाने में छिपना सबसे सुरक्षित है, खासकर जहां खिड़कियां कम हों। अगर तहखाना नहीं है तो मोटी दीवारों वाली जगह चुनें और मिट्टी या रेत के बैग दीवारों के पास रखकर सुरक्षा बढ़ाएं।

खुद को इन जगहों पर रखें सुरक्षित

पहले 48 घंटे किसी सुरक्षित जगह पर बिताना बहुत जरूरी है। इस दौरान कुछ बातों का ध्यान रखें। अपने साथ कम से कम दो हफ्ते का खाना, पानी और जरूरी दवाइयां रखें। हर व्यक्ति को रोजाना करीब चार लीटर पानी चाहिए। खिड़कियां और दरवाजे सील कर दें ताकि रेडियोएक्टिव धूल अंदर न आए। इसके लिए प्लास्टिक शीट और टेप का इस्तेमाल कर सकते हैं।

अगर धूल शरीर पर लग जाए तो गीले कपड़े से अच्छे से साफ कर लें और गंदे कपड़ों को प्लास्टिक बैग में डालकर सील कर दें। बैटरी से चलने वाला रेडियो रखें ताकि सरकारी अपडेट्स मिल सकें। मोबाइल नेटवर्क शायद काम न करे, इसलिए इस पर भरोसा न करें।

लंबे समय तक रखनी होती है सावधानी

रेडिएशन का खतरा तुरंत तो कम हो जाता है, लेकिन इसका असर लंबे समय तक रह सकता है। यह कैंसर या दूसरी बीमारियों की वजह बन सकता है। इस कारण खाने-पीने की चीजों का खास ध्यान रखें। सिर्फ डिब्बाबंद खाना या सील किया हुआ पानी इस्तेमाल करें क्योंकि बाहर की सब्जियां या पानी रेडियोएक्टिव हो सकता है। अगर रेडिएशन के लक्षण जैसे उल्टी, चक्कर आना या त्वचा का लाल होना दिखें तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। पोटैशियम आयोडाइड नाम की गोली थायरॉइड को रेडियोएक्टिव आयोडीन से बचा सकती हैं, लेकिन इसे सिर्फ डॉक्टर या सरकार के कहने पर लें।

ये आधुनिक उपाय भी आ सकते हैं काम

आजकल कुछ आधुनिक चीजें भी रेडिएशन से बचने में मदद कर सकती हैं। कुछ डिवाइस रेडिएशन का स्तर चेक करते हैं। अगर आपके पास बजट है तो ऐसा डिवाइस रखना अच्छा है। कुछ मोबाइल ऐप्स भी हैं जो परमाणु आपातकाल में गाइड करते हैं, इन्हें पहले से डाउनलोड कर लें। अगर बिजली चली जाए तो सोलर चार्जर बहुत काम आएगा। यह फोन और रेडियो को चालू रख सकता है।

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