दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि एक पत्नी अपने पति की सहायक मात्र नहीं है और वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने या सार्थक सामाजिक कार्य करने के अपने सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने अधिकार बरकरार रखती है। न्यायमूर्ति नजमी वजीरी ने एक मकान मालिक की उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें निचली अदालत द्वारा उसके किरायेदार को बेदखल करने की याचिका को खारिज करने को चुनौती दी गई है।
हाईकोर्ट ने कहा कि यह नहीं माना जा सकता है कि पत्नी अपने पति के अधीन है और अपने वित्त से जुड़े सभी विवरण अपने पति को बताने या उसके साथ साझा करने के लिए बाध्य है। अदालत ने सात जुलाई को अपने आदेश में कहा, ‘‘एक पत्नी अपने पति की केवल सहायक नहीं होती है। उसकी पहचान उसके पति की पहचान के साथ विलीन या समाहित नहीं की जा सकती है। कानून की नजर में वह अपनी व्यक्तिगत पहचान बरकरार रखती है।”
याचिकाकर्ता मकान मालिक ने सदर बाजार में अपनी दुकान से किरायेदार को इस आधार पर बेदखल करने की मांग की थी कि उसकी दो विवाहित बेटियां बेरोजगार हैं और अपनी व्यावसायिक आकांक्षाओं के लिए संपत्ति का उपयोग करना चाहती हैं। निचली अदालत ने बेदखली याचिका को कई आधारों पर खारिज कर दिया था, जिसमें यह भी शामिल था कि मकान मालिक की पत्नी एक होटल चलाती हैं और उसने इस व्यवसाय के पहलुओं का खुलासा नहीं किया था। निचली अदालत ने पाया था कि याचिकाकर्ता की बेटियां आर्थिक रूप से मजबूत हैं।