हरियाणा के दंगा प्रभावित नूंह जिले में हालात धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है। लेकिन प्रशासन अभी भी किसी जल्दबाजी में नहीं है। नूंह जिला प्रशासन ने स्थिति में हो रहे सुधार को देखते हुए आज 9 अगस्त बुधवार को कर्फ्यू में चार घंटे की ढील देने की घोषणा की है। लेकिन इंटरनेट पर लगा प्रतिबंध बढ़ा दिया है। अब यहां 11 अगस्त तक इंटरनेट सर्विस बंद रहेगी। पहले नूंह जिले में 10 अगस्त तक के लिए इंटरनेट बैन किया गया था। अब प्रशासन धीरे-धीरे पाबंदियां हटा रहा है। इससे पहले मंगलवार को भी जिले में कर्फ्यू में चार घंटे की ढील दी गई थी। जिससे लोगों ने बड़ी राहत की सांस ली। हालांकि हिंसा के बाद नूंह में रह रहे प्रवासी लोग अब अपने मूल स्थान को लौटने लगे हैं।

दरअसल नूंह क्षेत्र के टौरू इलाके में अल्पसंख्यक समुदाय के निवासियों ने 31 जुलाई को सांप्रदायिक झड़पों के बाद दुर्व्यवहार और यातना का आरोप लगाया है और अब उन्‍हें यहां अपना भविष्य अनिश्चित दिख रहा है, यहां तक कि वे सिर पर छत से भी वंचित हो गए हैं। प्रभावित निवासियों में से एक नूर मोहम्मद की झोपड़ी को अधिकारियों ने ध्वस्त कर दिया है। उन्‍होंने गलत तरीके से निशाना बनाए जाने पर निराशा जताई है और हिंसा में उनकी भागीदारी की बात कहे जाने पर सवाल उठाया है।

मालूम हो कि 2 अगस्त को कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने 200 से अधिक झुग्गियों को यह आरोप लगाते हुए ध्वस्त कर दिया था कि इस बस्ती के 14 युवक 31 जुलाई को नूंह जिले में हुई हिंसक झड़प के दौरान पथराव में शामिल थे। लगभग 150 प्रवासी परिवार तब सुर्खियों में आ गए, जब अधिकारियों ने दावा किया कि कुछ निवासी सांप्रदायिक झड़पों के दौरान दंगों में शामिल थे।

हालांकि, टौरू झुग्गी बस्ती में रहने वाले परिवार इन दावों का विरोध करते हुए कहते हैं कि उन्होंने बेदखली की कोई औपचारिक सूचना या उनके खिलाफ शिकायत प्राप्त किए बिना एक दशक तक इस क्षेत्र में जीवन बिताया है। राष्ट्रीयता के अपने दावों को प्रमाणित करने के प्रयास में कुछ निवासियों ने अपनी भारतीय पहचान के प्रमाण के रूप में अपने आधार और पैन कार्ड दिखाए। यह समुदाय मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल और असम से आया है। समुदाय के लोग उन्हें अवैध बांग्लादेशी प्रवासी बताए जाने का पुरजोर विरोध कर रहे हैं।

कचरा बीनने वाले नूर आलम ने कहा, “हमारा घर बेवजह गिरा दिया गया। हम दो दिनों तक सड़क पर सोए और अब हम अपने एक रिश्तेदार के पास जा रहे हैं, जो गुरुग्राम में रहता है।” वहीं, हाशिम ने कहा, “मैं यहां 2018 से रह रहा हूं। एक कंपनी में काम करता हूं। मेरा घर भी तोड़ दिया गया। हमारे पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है। मैं अपने परिवार के साथ तीन दिनों तक सड़क पर सोया। मुझे अपने परिवार के साथ वापस असम लौटना पड़ रहा है, क्योंकि यहां कोई हमें किराए पर घर नहीं दे रहा है।”

इसी बस्ती में रहने वाले हमजा खान ने मौजूदा हालात पर चिंता जताई। उन्‍होंने कहा कि वह असम से आकर यहां रहने लगे। चुनाव के समय उनका परिवार मतदान करने के लिए असम चला जाता है। यहां कुछ लोग पश्चिम बंगाल के हैं, वे भी मतदान करने के लिए अपने मूल स्‍थान पर चले जाते हैं। खान ने कहा, “अब हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचा है। हममें से ज्यादातर लोग अपने मूल स्‍थान पर लौट गए हैं और मैं भी जल्द ही यहां से चला जाऊंगा।”

दूसरी ओर, अधिकारियों का दावा है कि पिछले चार वर्षों में तावडू क्षेत्र में हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (एचएसवीपी) की जमीन पर अवैध रूप से झुग्गियां बनाई गई थीं। हिंसा की जांच करते हुए पुलिस ने दावा किया कि अधिकांश प्रदर्शनकारियों ने तावडू और उसके आसपास पथराव किया था और झड़पों के दौरान दुकानों, पुलिस और आम लोगों को निशाना बनाया था।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Verified by MonsterInsights