भारत ने धार्मिक स्वतंत्रता के विषय पर अमेरिकी विदेश विभाग की उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है, जिसमें देश में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन को लेकर चिंता जताई गई थी। भारतीय विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को अमेरिकी रिपोर्ट के पक्षपातपूर्ण करार दिया और कहा कि अल्पसंख्यकों पर कथित हमलों को लेकर भारत की आलोचना गलत है और नकारात्मक मंशा से प्रेरित है।

अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा सोमवार को जारी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर 2022 की रिपोर्ट में भारत के कई राज्यों में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा हिंसा की “कई रिपोर्ट” की ओर इशारा किया गया है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि ऐसी रिपोर्ट ”गलत सूचना और त्रुटिपूर्ण समझ” पर आधारित होती हैं। अरिंदम बागची ने कहा, ”हम अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी विदेश विभाग की 2022 की रिपोर्ट जारी होने से अवगत हैं। अफसोस की बात है कि इस तरह की रिपोर्ट अब भी गलत सूचनाओं और गलत समझ पर आधारित हैं।”

बागची ने कहा, “कुछ अमेरिकी अधिकारियों द्वारा प्रेरित और पक्षपातपूर्ण टिप्पणी इन रिपोर्टों की विश्वसनीयता कम करती है। हम अमेरिका के साथ अपनी साझेदारी को महत्व देते हैं और दोनों देश अहम मुद्दों पर खुलकर आदान-प्रदान करना जारी रखेंगे।”

बता दें कि 22 जून को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की राजकीय यात्रा पर जाने वाले हैं और उससे ठीक एक महीने पहले यह रिपोर्ट जारी की गई है। भारत ने इसी तरह 2021 में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की रिपोर्ट पर भी पिछले साल जारी अमेरिकी बयान विभाग की रिपोर्ट को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह “पक्षपाती विचार” पर आधारित है।

हालिया अमेरिकी रिपोर्ट में गुजरात में सादे वर्दी में पुलिस द्वारा अक्टूबर 2022 में एक त्योहार के दौरान हिंदुओं को घायल करने के आरोपी चार मुस्लिम पुरुषों की पिटाई करने और पिछले साल अप्रैल में खरगोन में सांप्रदायिक हिंसा के बाद मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मुस्लिमों के घरों और दुकानों पर बुलडोज़र चलाने जैसे उदाहरणों का हवाला दिया गया है।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि कई राज्यों में पुलिस ने ईसाईयों को धर्मांतरण के लिए मजबूर करने के आरोप में गिरफ्तार किया है। इसमें कहा गया है कि ईसाई समूहों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने कभी-कभी भीड़ की सहायता की ताकि प्रार्थनाओं को बाधित किया जा सके। भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद (आईएएमसी) ने भी आरोप लगाया है कि धर्मांतरण विरोधी कानूनों का उपयोग करके ईसाइयों पर हमले लक्षित किए गए थे।

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