इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक धार्मिक जुलूस में कथित तौर पर कुरान की आयत और कलमा लिखा तिरंगा ले जाने वाले मुस्लिम समुदाय के छह लोगों के खिलाफ शुरू किए गए आपराधिक मुकदमे को रद्द करने से इनकार कर दिया है।
गुलामुद्दीन और पांच अन्य द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का कृत्य भारतीय ध्वज संहिता, 2002 के तहत दंडनीय है और इनके द्वारा राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 का उल्लंघन किया गया।
अदालत ने इस बात पर जोर दिया,‘‘भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा इस राष्ट्र की एकता और विविधता का प्रतीक है। यह भारत की सामूहिक पहचान और संप्रभुता का प्रतिनिधित्व करने वाला एक एकीकृत प्रतीक है। तिरंगा के अपमान का भारत जैसे एक विविध समाज वाले देश में दूरगामी सामाजिक सांस्कृतिक निहितार्थ हो सकता है।’’
अदालत ने कहा कि इस तरह की घटनाएं ऐसे लोगों द्वारा की जा सकती हैं जो सांप्रदायिक कलह पैदा करने या विभिन्न समुदायों के बीच गलतफहमी बढ़ाने का प्रयास करते हैं, इसलिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि कुछ लोगों के कृत्यों का इस्तेमाल एक संपूर्ण समुदाय की निंदा करने में नहीं किया जाना चाहिए।
इस मामले के तथ्यों के मुताबिक, जालौन जनपद की पुलिस ने गुलामुद्दीन और पांच अन्य के खिलाफ एक आपराधिक मामला दर्ज किया था और जांच के बाद इनके खिलाफ चार अक्टूबर 2023 को आरोपपत्र दाखिल किया।
इसके बाद, जिला अदालत ने 14 मई 2024 को आरोपपत्र का संज्ञान लेने के बाद इन आरोपियों को समन जारी किया जिस पर आरोपियों ने धारा 482 (उच्च न्यायालय को प्राप्त अधिकार) के तहत जालौन की जिला अदालत में लंबित संपूर्ण आपराधिक मुकदमे को रद्द करने का उच्च न्यायालय से अनुरोध किया।
राज्य सरकार के अधिवक्ता ने दलील दी कि इन याचिकाकर्ताओं को घटना के चश्मदीद गवाह पुलिस कई कांस्टेबल द्वारा नामजद किया गया है। इसके अलावा, जुलूस में इस्तेमाल तिरंगे में अरबी में आयत और कलमा लिखा था।
अदालत ने 29 जुलाई 2024 को दिए अपने आदेश में कहा, ‘‘उक्त समन आदेश में किसी भी तरह के अवैधता, प्रतिकूलता या किसी अन्य महत्वपूर्ण त्रुटि सामने नहीं लाई जा सकी है जिससे कि इस अदालत द्वारा कोई हस्तक्षेप वांछित हो। इसलिए अदालत इस याचिका को खारिज करती है।