लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अवैध धर्मांतरण के दो आरोपियों के जमानत प्रार्थना पत्र खारिज करने के जनपद न्यायालय के आदेश को निरस्त करते हुए, उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि अभियुक्तों की ओर से दिए गए इस तर्क में भी बल है कि अच्छी पढ़ाई देना, पवित्र पुस्तक बाइबिल बांटना, बच्चों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना, ग्रामीणों की सभा आयोजित करना और भंडारा करवाना धर्मांतरण के लिए प्रलोभन की श्रेणी में नहीं आता। इसके साथ ही न्यायालय ने यह टिप्पणी भी की है कि मामले की एफआईआर सत्ताधारी पार्टी के एक जिला मंत्री ने दर्ज करवाई है जबकि सम्बंधित प्रावधान के तहत वर्तमान मामले में एफआईआर दर्ज करवाने के लिए वह सक्षम व्यक्ति नहीं था। यह निर्णय न्यायमूर्ति शमीम अहमद की एकल पीठ ने होजे पपाचेन व शीजा की अपील पर पारित किया है।
मामला अम्बेडकर नगर जनपद के जलालपुर थाने का है। मामले की एफआईआर भाजपा के जिला मंत्री चंद्रिका प्रसाद ने 24 जनवरी 2023 को दर्ज करवाई थी जिसमें कहा गया था कि ग्राम सभा शाहपुर फिरोज की बस्ती में अभियुक्तगण लोगों को विभिन्न प्रकार से प्रलोभन देकर तीन महीने से धर्म परिवर्तन का कार्य कर रहे हैं। कहा गया कि इससे वहाँ के अनुसूचित समाज के लोग काफी आहत हैं।
मामले की सुनवाई के दौरान अभियुक्तों की ओर से दलील दी गई कि अच्छी पढ़ाई देना या पवित्र पुस्तक बाइबिल बांटना इत्यादि धर्मांतरण के लिए प्रलोभन नहीं है बल्कि यह तो राज्य की असफलता है कि वह जरूरतमंदों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मुहैया करा पा रही है। न्यायालय ने पारित अपने निर्णय में माना कि अभियुक्तों की ओर से दी गई इस दलील में बल है कि अच्छी पढ़ाई देना, पवित्र पुस्तक बाइविल बांटना, बच्चों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना, ग्रामीणों की सभा आयोजित करना और भंडारा करवाना धर्मांतरण के लिए प्रलोभन की श्रेणी में नहीं आता।
न्यायालय ने कहा कि सम्बंधित अधिनियम के तहत पीड़ित व्यक्ति, उसके माता- पिता, भाई, बहन या रक्त सम्बंधी अथवा विवाह या दत्तक सम्बंधी ही एफआईआर लिखाने के लिए सक्षम हैं जबकि वर्तमान मामले में एफआईआर सत्ताधारी दल के जिला मंत्री ने लिखाई है जो प्रावधान के तहत सक्षम व्यक्ति नहीं है।