दिवाली से दो दिन पहले राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाकों में मेघराज जमकर बरसे जिसके कारण महानगर की आबोहवा में काफी सुधार आया और लोगों ने साफ हवा में सांस ली।
लेकिन दिवाली के मौके पर हुई आतिशबाजी ने फिर से दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ा दिया है। सोमवार की सुबह जब लोग सोकर उठे तो उन्हें धुंध की चादर पसरी हुई दिखाई दी। दोपहर बारह बजे दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 455 दर्ज किया गया।
सर्वोच्च अदालत ने राजधानी दिल्ली समेत पूरे देश में प्रदूषण की रोकथाम के लिए आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन छोटे-बड़े सभी शहरों और महानगरों में शीर्ष अदालत के आदेश की धज्जियां उड़ती देखी गई। दिल्ली में दिवाली के आसपास हवा की गुणवत्ता बेहद खराब हो जाती है।
पिछले सप्ताह आठ-नौ दिनों से यहां की हवा जहरीली हो गई थी और एक्यूआई का स्तर 500 को पार कर गया था जिसके कारण ग्रेडेड रेस्पॉन्स एक्शन प्लान (ग्रेप) के चौथा चरण लागू किया गया था। इस स्थिति में केवल सीएनजी, इलेक्ट्रिक और बीएस-6 वाहन ही दूसरे राज्यों से दिल्ली में प्रवेश कर सकते थे। दिल्ली की सरकार प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कृत्रिम बारिश कराने की योजना बना रही थी, लेकिन शुक्रवार की बारिश से आठ साल बाद दिवाली के दिन सबसे अच्छी वायु गुणवत्ता दर्ज की गई थी।
यह स्थिति करीब 48 घंटे तक ही रही। सोमवार की सुबह को दिल्ली फिर से गैस चेम्बर में तब्दील होती दिखाई दे रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्लीवासी वायु प्रदूषण की वजह से अपने जीवन के औसतन 12 वर्ष गंवा देते हैं। हवा की गुणवत्ता खराब होने का प्रभाव सबसे ज्यादा बच्चों और बुजुगरे पर पड़ता है। अब अहम सवाल यह है कि राजधानी दिल्ली समेत पूरे देश की वायु गुणवत्ता को कैसे सुधारा जाए। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि केवल पटाखों से ही आबोहवा खराब नहीं होती।
पराली जलाना, सड़कों पर बढ़ते वाहन और एयरकंडीशन आदि के इस्तेमाल से भी वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। इस समस्या का समाधान करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को एकजुट होकर अभियान चलाना होगा। केवल कानून बनाकर या अदालतों द्वारा प्रतिबंध लगाकर वायु प्रदूषण की समस्या से निजात नहीं पाया जा सकता। जब तक देश के नागरिकों में चेतना नहीं आएगी, उन्हें अपने वतन से प्यार नहीं होगा तब तक न तो प्रदूषण से मुक्ति मिल पाएगी और न स्वच्छता अभियान ही सफल हो पाएगा।