उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित नेता चंद्रशेखर आजाद तेजी से एक उभरते हुए चेहरे के रूप में सामने आ रहे हैं। नगीना से सांसद बनने के बाद उनकी राजनीतिक पकड़ और लोकप्रियता ने राज्य की दो बड़ी विपक्षी पार्टियों बहुजन समाज पार्टी (BSP) और समाजवादी पार्टी (SP) दोनों के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है।

दलित वोट बैंक पर असर
चंद्रशेखर आजाद की पार्टी, आजाद समाज पार्टी (एएसपी), खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तेजी से अपना प्रभाव बढ़ा रही है। यह वही इलाका है जहां पर मायावती की बीएसपी का कभी मजबूत जनाधार हुआ करता था। दलित वोटर, विशेष रूप से जाटव समुदाय, जो पहले बीएसपी की ताकत माने जाते थे, अब चंद्रशेखर की ओर रुख कर रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में नगीना सीट से लगभग 1.5 लाख वोटों से मिली जीत इसका प्रमाण है। वहीं बीएसपी इस सीट पर चौथे स्थान पर रही, जो पार्टी के कमजोर होते आधार को दिखाता है।

मुस्लिम वोटों पर भी नजर
चंद्रशेखर ने हाल ही में मुस्लिम समुदाय से एकजुट होकर “बार-बार ठगे जाने से बचने” की अपील की है। उनका यह बयान संकेत देता है कि वह समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक को भी साधने की रणनीति बना रहे हैं। 2024 के चुनावों में सपा ने 37 सीटें जीती थीं, जिसमें दलित और मुस्लिम वोटरों की अहम भूमिका थी। ऐसे में चंद्रशेखर का बढ़ता प्रभाव सपा के लिए भी खतरे की घंटी है।

मायावती की रणनीति विफल
बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने इस बार चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर दलित-मुस्लिम गठजोड़ बनाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। वहीं दूसरी ओर, चंद्रशेखर ने नगीना में इस फार्मूले को सफलतापूर्वक लागू किया। बीएसपी का वोट प्रतिशत 2007 के 30.43% से गिरकर 2024 में केवल 9.39% रह गया है, जो यह दर्शाता है कि पार्टी लगातार कमजोर हो रही है।

सपा के साथ गठबंधन क्यों नहीं हुआ?
2022 और 2024 में सपा और चंद्रशेखर के बीच गठबंधन की चर्चाएं हुईं, लेकिन बात नहीं बनी। चंद्रशेखर ने दावा किया कि अखिलेश यादव ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। इसके बाद उन्होंने सपा पर दलितों को सिर्फ वोट बैंक समझने का आरोप लगाया। अब चंद्रशेखर ने 2027 विधानसभा चुनाव में सभी 403 सीटों पर लड़ने का ऐलान कर दिया है, जिससे सपा को सीधी चुनौती मिल सकती है।

BJP को मिल सकता है फायदा
बीएसपी और सपा के बीच दलित-मुस्लिम वोटों का बंटवारा भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए एक सुनहरा अवसर हो सकता है। बीजेपी पहले ही गैर-जाटव दलित वोटों (जैसे खटिक, वाल्मीकि) को साधने में सफल रही है। चंद्रशेखर की बढ़ती लोकप्रियता विपक्ष के वोटों में विभाजन कर सकती है, जिससे त्रिकोणीय मुकाबलों में बीजेपी को लाभ मिल सकता है। हालांकि, पश्चिम यूपी में दलित-मुस्लिम गठजोड़ अगर मजबूत हुआ, तो यह बीजेपी के लिए खतरा भी बन सकता है।

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