लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा ने अब संगठन के पेच कसने की भी तैयारी शुरू कर दी है। इसके तहत पार्टी कई राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष बदल सकती है और स्थानीय टीमों में भी बदलाव किए जाएंगे। इसके अलावा कुछ नेताओं को नई भूमिका में भी लाया जा सकता है। पार्टी में अंदरखाने चर्चा है कि ऐसे कई पदाधिकारी हैं, जो अहम जिम्मेदारी पर हैं, लेकिन चुनाव लड़ने और लड़ाने का उन्हें कम ही अनुभव है। ऐसे में उन लोगों के स्थान पर ऐसे लोगों को तरजीह दी जाएगी, जो चुनावी राजनीति का लंबा अनुभव रखते हैं।
खासतौर पर महाराष्ट्र और गुजरात के बड़े नेताओं को अहम जिम्मेदारियां मिल सकती हैं। भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी यूपी और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में 2019 के प्रदर्शन को दोहराने की कोशिश में है। इन दो ही राज्यों से लोकसभा की 128 सीटें आती हैं। यूपी में 80 सीटें हैं और दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र हैं, जो 48 सांसद दिल्ली भेजता है। यूपी में भाजपा अपनी स्थिति को मजबूत मान कर चल रही है। इसके बाद भी उसने 9 सीटों पर फोकस करने का फैसला लिया है, जहां पहले वह जीत नहीं सकी थी।
हालांकि पार्टी को ज्यादा चिंता महाराष्ट्र को लेकर है। इसकी वजह यह है कि एनसीपी, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे गुट वाली शिवसेना एक साथ हैं। इन तीनों के मिल जाने से एक जनाधार तो बनता ही है। सामाजिक समीकरण भी ऐसा तैयार होता है, जो भाजपा की टेंशन बढ़ाने वाला है। तीनों दलों की एकता विदर्भ, मराठवाड़ा से लेकर मुंबई तक में भाजपा की चिंताओं को बढ़ाती है। हालांकि उसे एकनाथ शिंदे गुट से उम्मीद है। पर इसमें भी पेच यह है कि भाजपा कितनी सीटों पर खुद चुनाव लड़ती है और कहां-कहां एकनाथ शिंदे गुट को मौका देती है।
सोमवार और मंगलवार को अमित शाह, जेपी नड्डा और भाजपा के संगठन महामंत्री बीएल संतोष के बीच मीटिंग हुई थी। इस मीटिंग में संगठन में फेरबदल को लेकर भी बात हुई है। खासतौर पर 2024 के लोकसभा चुनाव में किसे क्या जिम्मा दिया जाए, इसे लेकर भी बात हुई है। बता दें कि भाजपा पहले ही विनोद तावड़े, सुनील बंसल और तरुण चुग को उन सीटों पर अभियान चलाने की जिम्मेदारी दे चुकी है, जहां वह कमजोर है। ये तीनों ही नेता अमित शाह के भरोसेमंद हैं। सूत्रों का कहना है कि देश भर में भाजपा ने ऐसी 160 सीटें चुनी हैं, जहां वह ज्यादा फोकस करेगी और वह खुद को यहां कमजोर मान रही है।