भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने सिंगापुर में चल रहे 22वें शांग्री-ला डायलॉग में पाकिस्तान को लेकर सख्त रुख अपनाया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि भारत अब बिना योजना और रणनीति के नहीं चलता। यदि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की तरफ से सिर्फ शत्रुता और आतंकवाद मिले तो उससे दूरी बनाए रखना ही सबसे समझदारी भरा कदम है। सीडीएस ने याद दिलाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में शांति की पहल करते हुए शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित किया था। लेकिन जनरल चौहान ने दो टूक कहा – “तालियां बजाने के लिए दो हाथ चाहिए।” अगर दूसरे पक्ष से सहयोग के बजाय दुश्मनी ही मिले तो दूरी रखना ही सबसे व्यावहारिक नीति बन जाती है। अपने संबोधन में जनरल चौहान ने भारत की आज की स्थिति को रेखांकित करते हुए कहा कि जब देश ने आज़ादी पाई थी, तब पाकिस्तान कई मामलों में आगे था – चाहे वो GDP, सामाजिक विकास या प्रति व्यक्ति आय क्यों न हो। लेकिन आज भारत हर क्षेत्र में पाकिस्तान से आगे निकल गया है। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि गंभीर और दीर्घकालिक रणनीतिक फैसलों का परिणाम है।

शांग्री-ला डायलॉग: एशिया का प्रमुख सुरक्षा मंच

यह डायलॉग एशिया-प्रशांत क्षेत्र की प्रमुख रक्षा चर्चा मंचों में से एक है। लंदन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ (IISS) द्वारा 2002 से आयोजित यह सम्मेलन तीन दिनों तक चलता है। इस बार इसमें 47 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए हैं, जिनमें 40 मंत्री स्तर के अधिकारी भी हैं। जनरल चौहान ने सम्मेलन में ‘भविष्य के युद्ध और युद्धकला’ विषय पर मुख्य भाषण दिया और एक विशेष सत्र में ‘भविष्य की चुनौतियों के लिए रक्षा नवाचार समाधान’ पर भी विचार रखे। शांग्री-ला डायलॉग के दौरान जनरल चौहान ने कई देशों के रक्षा प्रतिनिधियों से मुलाकात की। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, जापान, इंडोनेशिया, नीदरलैंड्स, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, ब्रिटेन जैसे देशों के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में रक्षा सहयोग और साझा सुरक्षा चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की।

भारत-अमेरिका: ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा

भारत और अमेरिका के बीच भी इस सम्मेलन के दौरान अहम बातचीत हुई। INDOPACOM के कमांडर एडमिरल सैमुअल जे. पापारो और जनरल चौहान के बीच हुई मुलाकात में ‘ऑपरेशन सिंदूर’, मिलिट्री-टू-मिलिट्री कोऑपरेशन और क्षेत्रीय सुरक्षा पर सहयोग के नए रास्तों पर चर्चा हुई। दोनों देशों ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में उभरती चुनौतियों से मिलकर निपटने की प्रतिबद्धता जताई।

चीन की रणनीति में बदलाव

रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस बार चीन ने अपने रक्षा मंत्री डोंग जुन को सम्मेलन में नहीं भेजा है। उनकी जगह पीपल्स लिबरेशन आर्मी की नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधिमंडल हिस्सा ले रहा है। विशेषज्ञ इसे चीन की बदली हुई रणनीति मान रहे हैं। सम्मेलन में ताइवान और दक्षिण चीन सागर में अमेरिका-चीन के बीच तनाव भी प्रमुख मुद्दों में शामिल है।

यूरोपीय और एशियाई नेताओं की भागीदारी

इस बार पहली बार फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को उद्घाटन भाषण के लिए बुलाया गया। इसके अलावा मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहीम और अमेरिकी रक्षा सचिव पीट हेगसेथ भी सम्मेलन को संबोधित कर रहे हैं। हेगसेथ का भाषण खास तौर पर महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि वो ट्रंप प्रशासन की इंडो-पैसिफिक रणनीति को सामने रखेंगे।

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