तमिलनाडु की भाजपा विधायक वनथी श्रीनिवासन ने आरोप लगाया है कि तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) सरकार जानबूझकर आधिकारिक दस्तावेजों से हिंदू धर्म के संदर्भों को मिटाने का प्रयास कर रही है। ऑनलाइन जाति प्रमाण पत्रों का उदाहरण देते हुए उन्होंने दावा किया कि इन दस्तावेजों में जाति के नामों से पहले अब ‘हिंदू’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। इसे जानबूझकर उठाया गया और लक्षित कदम बताते हुए श्रीनिवासन ने इसे सत्तारूढ़ डीएमके का हिंदू विरोधी व्यवहार बताया। भाजपा नेता ने यह भी सवाल उठाया कि मुख्यमंत्री एमके स्टालिन हिंदू त्योहारों के दौरान कभी शुभकामनाएं क्यों नहीं देते हैं, उन्होंने कहा कि यह बहुसंख्यकों की भावनाओं की अवहेलना के एक बड़े पैटर्न को दर्शाता है।
उन्होंने बिना किसी का नाम लिए आरोप लगाया कि ऐसे फैसलों के पीछे एक ‘सुपर चीफ मिनिस्टर’ का हाथ है। हिंदू धर्म में जातिगत मतभेद होने के कारण शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण जाति को दिया जाता है। स्कूल और कॉलेज के छात्रों को दिए जाने वाले प्रमाण पत्रों में जाति के नाम के साथ हिंदू शब्द शामिल होने पर ही उन्हें आरक्षण मिल पाएगा। जब ऐसा है, तो मुझे नहीं पता कि डीएमके सरकार हिंदू नाम क्यों हटा रही है। डीएमके सरकार की इस कार्रवाई के पीछे निश्चित रूप से कोई अच्छी मंशा नहीं हो सकती है। उन्होंने एक बयान में लिखा, डीएमके सरकार को भारत के संविधान के खिलाफ इस कृत्य को छोड़ देना चाहिए।
उनका यह बयान उस समय आया जब मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया कि वह राजस्व अधिकारियों को उन व्यक्तियों को ‘कोई जाति, कोई धर्म नहीं’ प्रमाण पत्र जारी करने की अनुमति दे जो किसी विशेष जाति या धर्म से पहचाने जाने की इच्छा नहीं रखते हैं। न्यायालय का यह निर्देश उस समय आया जब वह एकल न्यायाधीश के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें स्थानीय तहसीलदार को याचिकाकर्ता के परिवार को ऐसे प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया गया था।