डॉक्टरों और अर्थशास्त्रियों के साथ जन स्वास्थ्य समूहों ने सरकार से अपील की है कि 2024-25 के केंद्रीय बजट में सभी तंबाकू उत्पादों पर उत्पाद शुल्क बढ़ाया जाये, ताकि अतिरिक्त राजस्व प्राप्त हो सके। वित्त मंत्रालय से की गई अपनी अपील में इन सबों ने सिगरेट, बीड़ी और बगैर धुएँ वाले तंबाकू पर स्वास्थ्य कर बढ़ाने का आग्रह किया है। उत्पाद शुल्क स्वास्थ्य कर है जो तंबाकू जैसे उन उत्पादों पर लगता है जिनका जन स्वास्थ्य पर स्पष्ट नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
इन विशेषज्ञों के अनुसार, तंबाकू की खपत को विनियमित करने के लिए कई सार्वजनिक नीति उपकरणों में से उत्पाद कर को बढ़ाना सबसे अधिक किफायती माना जाता है। यह दुनिया भर में हुए शोध के एक बड़े समूह पर आधारित है। हेल्थ यानी स्वास्थ्य कर को सिन (पाप) टैक्स के रूप में भी जाना जाता है। अक्सर इसे प्राप्त करने के लिए कई देशों में इसका उपयोग किया जाता है।
पिछले 10 वर्षों में सिगरेट, बीड़ी और बगैर धुंए वाले तंबाकू जैसे उत्पाद लगातार सस्ते हुए हैं। हाल ही में, सिगरेट पर एनसीसीडी में मामूली वृद्धि हुई है, लेकिन इसके अलावा जुलाई 2017 में जीएसटी की शुरुआत के बाद से तंबाकू करों में कोई बड़ी वृद्धि नहीं हुई है। वर्तमान जीएसटी दर, मुआवजा उपकर, एनसीसीडी और केंद्रीय उत्पाद शुल्क को जोड़कर कुल कर बोझ (अंतिम कर सहित खुदरा मूल्य के प्रतिशत के रूप में कर) सिगरेट के लिए केवल 49.3%, बीड़ी के लिए 22% और धुआं रहित तंबाकू के लिए 63% है। विश्व स्वास्थ्य संगठन सभी तंबाकू उत्पादों पर खुदरा मूल्य का कम से कम 75% कर बोझ डालने की सिफारिश करता है। लेकिन सभी तंबाकू उत्पादों पर कर का मौजूदा बोझ इससे काफी कम है।
राजगिरी कॉलेज ऑफ सोशल साइंसेज, कोच्चि में स्वास्थ्य अर्थशास्त्री और सहायक प्रोफेसर डॉ. रिजो जॉन ने कहा, “इस तथ्य के मद्देनजर कि जीएसटी को लागू हुए छह साल से अधिक समय हो चुका है और इस अवधि में तंबाकू उत्पादों पर कोई बड़ी कर वृद्धि नहीं हुई है, केंद्र सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण है वह तंबाकू पर टैक्स बढ़ाने के बारे में विचार करे और यह राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक शुल्क (एनसीसीडी) में मामूली वृद्धि से अलग हो जो तंबाकू पर लगाए गए कुल करों का 10% से भी कम है। जब सरकार तंबाकू पर कर बढ़ाने से बचती है, तो तंबाकू कंपनियां स्वतंत्र रूप से कीमतें बढ़ा देती हैं, जिससे उनका मुनाफा बढ़ जाता है। नतीजतन, सरकार जो संवर्धित राजस्व एकत्र कर सकती थी, उसे उद्योग के मुनाफे की ओर मोड़ या घुमा दिया जाता है।
केंद्र सरकार द्वारा सभी तंबाकू उत्पादों पर उत्पाद शुल्क बढ़ाना केंद्र सरकार द्वारा राजस्व बढ़ाने की तात्कालिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए एक बहुत प्रभावी नीतिगत उपाय हो सकता है। यह राजस्व प्राप्त करने और तंबाकू के उपयोग तथा संबंधित बीमारियों को कम करने के लिए एक सफल उपाय होगा। टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में हेड नेक कैंसर सर्जन, डॉ. पंकज चतुर्वेदी ने कहा, तम्बाकू का उपयोग, धीमी गति से बढ़ने वाली महामारी है। हर साल यह खुद 13 लाख भारतीयों की जान लेता है।
तम्बाकू उत्पादों को युवाओं और समाज के वंचित वर्गों जैसी कमजोर आबादी के हाथों से दूर रखना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। भारत में लगभग 50 प्रतिशत कैंसर तम्बाकू के कारण होते हैं। सभी तंबाकू उत्पादों पर कर बढ़ाना देश के साथ-साथ उपयोगकर्ताओं के भी हित में है। इससे उनकी सामर्थ्य और खपत कम हो जाएगी।
स्वास्थ्य पर संसद की स्थायी समिति ने हाल ही में कैंसर देखभाल योजना और प्रबंधन पर एक प्रासंगिक और व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिसमें उसने भारत में कैंसर के कारणों का विस्तृत अध्ययन किया है और चिंता के साथ दर्ज किया है कि भारत में, “तम्बाकू के कारण होने वाले मुँह के कैंसर के कारण सबसे अधिक संख्या में लोगों की जान जाती है। इसके बाद फेफड़ों, ग्रासनली और पेट का कैंसर आता है।” इसमें यह भी कहा गया है कि तम्बाकू का उपयोग कैंसर से जुड़े सबसे प्रमुख जोखिम कारकों में से एक है।
भारत में तंबाकू उत्पादों की कीमतें सबसे कम हैं और तंबाकू उत्पादों पर कर बढ़ाने की जरूरत है। समिति तदनुसार सरकार को तम्बाकू पर कर बढ़ाने और प्राप्त अतिरिक्त राजस्व का उपयोग कैंसर की रोकथाम और जागरूकता के लिए करने की सिफारिश करती है।विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, तंबाकू उत्पादों के खुदरा मूल्य में करों का हिस्सा कम से कम 75% होना चाहिए। दुनिया भर के 40 से अधिक देशों ने अपने खुदरा मूल्य के 75% से अधिक पर तंबाकू कर लगाया है। इनमें श्रीलंका (77%) और थाईलैंड (78.6%) शामिल हैं।
भारत दुनिया में तम्बाकू उपयोगकर्ताओं की दूसरी सबसे बड़ी संख्या (268 मिलियन) है और इनमें से 13 लाख लोग हर साल तम्बाकू से संबंधित बीमारियों से मर जाते हैं। भारत में लगभग 27% कैंसर तम्बाकू के कारण होते हैं। तम्बाकू के उपयोग से होने वाली सभी बीमारियों और मौतों से वार्षिक आर्थिक लागत 2017-18 में 177,341 करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो भारत की जीडीपी का 1% है ।