हिन्दू धर्म में रोहिणी व्रत का बहुत माहत्व माना जाता है। वहीं, यह व्रत जैन धर्म के लोगों के लिए भी बहुत खास है। इस बार 31 अक्टूबर 2023 को रोहिणी व्रत रखा जाएगा। वहीं जैन धर्म में रोहिणी व्रत को नक्षत्रों से जोड़कर देखा जाता है। हिन्दू धर्म में इस व्रत का संबंध मां लक्ष्मी से माना गया है। रोहिणी व्रत पर परमपूज्य भगवान वासु स्वामी की पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त श्रद्धा भाव भगवान वासु स्वामी की भक्ति में लीन होते है। इस दिन जैन मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। जैन धर्म में रोहिणी व्रत विशेष महत्व रखता है। इस दिन किए गए दान को बहुत फलदायी माना जाता है। जैन धर्म में बहुत खास होता है रोहिणी व्रत, जानें इसकी पौराणिक व्रत कथा
रोहिणी व्रत कथा –
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में हस्तिनापुर नगर में वस्तुपाल नाम का एक राजा रहता था। उस राजा का धनमित्र नामक एक मित्र था। उसके मित्र धनमित्र की दुर्गंधा कन्या उत्पन्न हुई। धनमित्र को सदैव यह चिंता रहती थी कि उसकी कन्या का विवाह कैसे होगा जिस कारण धनमित्र ने धन का लालच देकर अपने मित्र के पुत्र श्रीषेन से उसका विवाह करवा दिया
परंतु वह दुगंध से परेशान होकर एक ही महीने में दुर्गंधा को छोड़कर चला गया। उसी समय अमृतसेन मुनिराज नगर में पधारे। धनमित्र ने अपनी पुत्री दुर्गंधा के दुखों को दूर करने के लिए अमृतसेन से उपाय पूछा जिस पर उन्होंने एक बात बताई कि गिरनार पर्वत के समीप एक नगर में राजा भूपाल राज्य करते थे।
उनकी रानी का नाम सिंधुमती थी। एक दिन राजा रानी के साथ वन में क्रीडा के लिए गए थे तब उसी बीच मार्ग में उन्होंने मुनिराज को देखा। उन्हें देखकर राजा ने रानी से घर जाकर आहार की व्यवस्था करने का आदेश दे दिया। राजा की आज्ञा के अनुसार रानी चली तो गई लेकिन क्रोधित होकर रानी ने मुनिराज को कड़वी तुम्बी का आहार दे दिया।
इससे मुनिराज को अत्यंत परेशानी हो गई और उन्होंने प्राण त्याग दिए। जब इस बात की खबर राजा को मिली तब उन्होंने रानी को नगर से निकाल दिया। इस पाप से रानी के शरीर में कोढ़ उत्पन्न हो गया। जीवन भर दुख भोगने के पश्चात् उस रानी का जन्म अब तुम्हारे घर पुत्री के रूप में हुआ।
यह सुनकर मुनिराज ने उन्हें रोहिणी व्रत धारण करने को कहा जिसके बाद दुर्गंधा ने श्रद्धापूर्वक रोहणी व्रत धारण किया। तत्पश्चात् फलस्वरूप उन्हें दुखों से मुक्ति मिली तथा अंत में वह मृत्यृ के बाद स्वर्ग में देवी स्वरूप बन गई।