प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को वैश्विक स्तर पर कृषि क्षेत्र के समक्ष आई विभिन्न चुनौतियों को रेखांकित करते हुए जी-20 देशों के कृषि मंत्रियों से वैश्विक खाद्य सुरक्षा हासिल करने के लिए सामूहिक कार्रवाई के तरीकों पर विचार करने का आह्वान किया। कृषि पर हैदराबाद में आयोजित जी-20 देशों की तीन दिवसीय बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने एक वीडियो संदेश में कहा कि कोरोना महामारी के कारण आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान पैदा हुआ और फिर भू-राजनीतिक तनावों के प्रभाव से भी स्थिति चिंताजनक हो गई है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की असामान्य घटनाएं बढ़ रही हैं और इन चुनौतियों को ‘वैश्विक दक्षिण’ के देशों में सबसे अधिक महसूस किया जाता है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं आपसे वैश्विक खाद्य सुरक्षा हासिल करने के लिए सामूहिक कार्रवाई के तरीकों पर विचार-विमर्श करने का आग्रह करता हूं। हमें सीमांत किसानों पर केंद्रित, सतत और समावेशी खाद्य प्रणाली तैयार करने के तरीके खोजने चाहिए। हमें वैश्विक उर्वरक आपूर्ति श्रृंखलाएं मजबूत करने के तरीके ढूंढने होंगे।” प्रधानमंत्री ने कहा कि बेहतर मृदा स्वास्थ्य, फसल स्वास्थ्य और उपज से जुड़ी कृषि पद्धतियों को भी अपनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘हमें अपने किसानों को नवाचार और डिजिटल प्रौद्योगिकी के साथ सशक्त बनाने की जरूरत है। हमें वैश्विक दक्षिण (दक्षिणी गोलार्द्ध के विकासशील देश) में छोटे और सीमांत किसानों के लिए समाधान को किफायती बनाना चाहिए।

कृषि और भोजन की बर्बादी को कम करने और अपशिष्ट से संपत्ति निर्माण में निवेश करने की भी तत्काल आवश्यकता है।” मोदी ने कहा कि भारत सरकार की नीति ‘बुनियादी मुद्दों पर लौटने’ (बैक टू बेसिक्स) और ‘भविष्य की ओर बढ़ने’ (मार्च टू फ्यूचर) का एक मिश्रण है और इसी को ध्यान में रखते हुए देश में प्राकृतिक खेती के साथ प्रौद्योगिकी-आधारित खेती को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘पूरे भारत में किसान अब प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं। वे कृत्रिम उर्वरकों या कीटनाशकों का उपयोग नहीं कर रहे हैं। उनका ध्यान धरती माता का कायाकल्प करने, मिट्टी के स्वास्थ्य की रक्षा करने, ‘प्रति बूंद, अधिक फसल’ पैदा करने और जैविक उर्वरकों व कीट प्रबंधन समाधानों को बढ़ावा देने पर है।” प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में किसान उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का सक्रिय रूप से उपयोग कर रहे हैं और अपने खेतों पर सौर ऊर्जा का उत्पादन और उपयोग कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘वे फसल चयन के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड का उपयोग कर रहे हैं तथा पोषक तत्वों का छिड़काव करने और फसलों की निगरानी करने के लिए ड्रोन का उपयोग कर रहे हैं। मेरा मानना है कि यह ‘मिश्रित दृष्टिकोण’ कृषि के कई मुद्दों को हल करने का सबसे अच्छा तरीका है।” वर्ष 2023 को ‘अंतर्राष्ट्रीय मोटे अनाज वर्ष’ के रूप में मनाए जाने का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि ये ‘सुपरफूड’ न केवल उपभोग के लिहाज से स्वास्थ्यप्रद हैं बल्कि कम पानी के उपयोग, कम उर्वरक की आवश्यकता और अधिक कीट-प्रतिरोधी होने के कारण ये हमारे किसानों की आय बढ़ाने में भी मदद करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘निश्चित रूप से मोटे अनाज नए नहीं हैं।

इनकी खेती हजारों सालों से होती रही है। लेकिन बाजार और बाजार के तरीकों ने हमारी पसंद को इतना प्रभावित किया कि हम परंपरागत रूप से उगाई जाने वाली इन खाद्य फसलों के मूल्य को भूल गए हैं।” उन्होंने पसंदीदा भोजन के रूप में ‘श्री अन्न’ (मोटे अनाज) के इस्तेमाल का आह्वान करते हुए कहा कि भारत मोटे अनाज में सर्वोत्तम तौर-तरीकों, अनुसंधान और प्रौद्योगिकियों को साझा करने के लिए मोटे अनाज अनुसंधान संस्थान को उत्कृष्टता केंद्र के रूप में विकसित कर रहा है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रसन्नता जताई कि बैठक में ‘खाद्य सुरक्षा और पोषण पर डेक्कन उच्च स्तरीय सिद्धांत’ और मोटे अनाज व अन्य अनाजों के लिए ‘महर्षि’ पहल पर विचार-विमर्श किया जा रही है। उन्होंने कहा कि इन दो पहलों का समर्थन समावेशी, सतत और सहनीय कृषि के समर्थन का वक्तव्य है।

 

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