बिहार में जातिगत जनगणना सामने आने के बाद मंगलवार को कांग्रेस ने कहा कि बिहार में जाति के आधार पर हुई जनगणना के ताजा आंकड़े सामने आने के बाद से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जैसी पार्टियां घबड़ा गई हैं और जनगणना के इन आंकड़ों ने देश का राजनीतिक परिदृश्य बदल दिया है।
कांग्रेस ओबीसी विभाग के प्रमुख कैप्टन अजय सिंह यादव ने पार्टी मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि बिहार सरकार ने जाति जनगणना के जो आंकड़े सामने रखे हैं उसके बाद से देश का राजनीतिक परिदृश्य ही बदल गया है। बिहार सरकार ने जाति आधारित गणना के जो आंकड़े जारी किए हैं उससे देश की राजनीतिक दिशा बदल गई है।
इससे लोगों को मालूम हो गया है कि देश में ऐसी जनसंख्या है, जिसे राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक रुप से दरकिनार नहीं किया जा सकता। वर्ष 2011 में हुई जाति जनगणना की रिपोर्ट जारी करने को लेकर कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने दबाव बनाया लेकिन पता नहीं भाजपा किस बात से डर रही है और इसके आंकड़े पेश नहीं कर रही है।
कांग्रेस नेता ने कहा,“बिहार सरकार ने जाति आधारित बिहार में अभी जो जाति आधारित गणना हुई है, उसमें पिछड़ा वर्ग की आबादी 63 प्रतिशत दिखाई गई है लेकिन जब बिहार सरकार यह जाति आधारित गणना करा रही थी तो आरएसएस के लोगों ने उसे रोकने की पूरी कोशिश की थी। इस गणना से बिहार के गरीब लोगों को काफी मदद मिलेगी।”
जाति जनगणना को लेकर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला किया और कहा “प्रधानमंत्री कहते हैं कि इससे सामाजिक व्यवस्था बिगड़ेगी और कांग्रेस जातिगत बातें कर पाप कर रही है। ये पाप है क्या। इस से बड़ा पुण्य क्या हो सकता है कि हम आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की बात कर रहे हैं। जाति जनगणना को लेकर भाजपा सरकार घबड़ा रही है।भाजपा सरकार 2011 में हुए जाति जनगणना के आंकड़े भी सार्वजनिक नहीं कर रही है।”
उन्होंने कहा कि 1931 में पहली जाति आधारित जनगणना में 52 प्रतिशत आबादी ओबीसी की थी। उसके बाद जाति जनगणना साल 1941 में हुई जिसे कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। साल 2011 में जनगणना हुई उसमें जाति जनगणना हुई लेकिन उसे उजागर नहीं किया गया।
शैक्षणिक संस्थानों, न्यायपालिका और अन्य संस्थानों में ओबीसी वर्ग की भागीदारी पर कई गंभीर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा वाले राज्यों में ओबीसी वर्ग के छात्रों को छात्रवृत्ति नहीं दी जा रही है। वाराणसी में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू)में ओबीसी के फंड से एक भी छात्रावास तैयार नहीं किया गया है जहां ओबीसी के बच्चों को बैठने की जरूरत नहीं है।
उनका कहना था कि देश में 44 केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं और वहां सिर्फ नौ प्रोफेसर है। एसोसिएट प्रोफेसर है सिर्फ दो प्रतिशत है। इसकी वजह है कि क्रीमीलेयर लगा दी गई है और इसके लिए आठ लाख रुपए की आय की सीमा तय कर दी गई है। न्यायपालिका में इस वर्ग की भागीदारी मात्र चार प्रतिशत है।