प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वकीलों और पुलिस अधिकारियों के बीच हुए विवाद से उत्पन्न वर्तमान मामले पर सुनवाई करते हुए वकीलों के प्रति महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि वकीलों की नैतिक दुविधा प्रायः सामाजिक और सार्वजनिक चुनौतियों में बदल जाती है। एक वकील का जीवन बंद कमरे के आरामदायक वातावरण जैसा नहीं होता बल्कि उसे दुनिया की भीड़ में रहते हुए अपनी दार्शनिकता को बनाए रखना पड़ता है। एक वकील के खिलाफ यह आम शिकायत होती है कि वह न्याय की परवाह नहीं करते हैं। वास्तव में वकील न्याय से अधिक अपने मुवक्किलों के हितों की चिंता करते हैं। एक वकील यह नहीं भूल सकता – कि उसका पेशा एक अनोखा व्यवसाय है। यह केवल इसलिए नहीं कि उसे समाज में एक कुलीन स्थिति प्राप्त है बल्कि इसलिए कि वकील होने के कारण उसे न्याय प्राप्त न करने के माध्यम के रूप में समुदाय का विश्वास प्राप्त है।
उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने नीलम सिंह की याचिका को खारिज करते हुए की। इस निर्णय की एक प्रति उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के अध्यक्ष और हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पदाधिकारी को भेजने का निर्देश दिया है, जिससे चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी नैतिक आचरण को अपनाकर नैतिकता को बनाए रखने के लिए वकीलों को संवेदनशील बनाया जा सके, साथ ही वकीलों को उस परंपरा को पुनर्जीवित करने के लिए प्रेरित करने का उद्देश्य है, जिसके लिए वकील जाने जाते हैं। दरअसल याची के पति और उनके पड़ोसियों के बीच विवाद हुआ। घटनास्थल पर पहुंची पुलिस ने याची के पति के साथ दुर्व्यवहार किया और जबरन उसे कर्नलगंज पुलिस स्टेशन, प्रयागराज ले गई। याची ने पति के मित्रों को पुलिस स्टेशन पहुंचने के लिए कहा। सभी हाईकोर्ट के वकील थे। याची का आरोप है कि पुलिस लॉकअप में उसके पति को बेरहमी से पीटा गया।