हुब्बल्ली। विधानसभा चुनाव लडऩे की होड़ में अत्यधिक इस्तीफे का पर्व हुआ है। इसके कारण, कर्नाटक विधान परिषद (ऊपरी सदन) की कुल संख्या बल गिर गई है। इस सप्ताह की शुरुआत में भाजपा के आयनूर मंजुनाथ के इस्तीफा देने के साथ ही 75 सदस्यीय ऊपरी सदन को छोडऩे वालों की संख्या आधा दर्जन तक पहुंच गई है। 20 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव के उपलक्ष्य में भाजपा के सी पुट्टन्ना, आर. शंकर, लक्ष्मण सवदी और बाबुराव चिंचनसूर ने इस्तीफा दिया है, जबकि कांग्रेस के सीएम इब्राहिम ने पिछले साल इस्तीफा देकर जद (एस) में शामिल हो गए थे। उन्हें जद (एस) का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। एच विश्वनाथ ने इस्तीफा देने की बात कही थी परन्तु आधिकारिक रूप से इस्तीफा देने में मुश्किलें आ रही हैं। इस बीच, अन्य दलों के कुछ ऊपरी सदन के सदस्यों भी इस बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। उनमें से कुछ ने चुनाव जीतने पर विधान परिषद से इस्तीफा देने का इरादा जताया है।
इस बारे में विधान परिषद के सभापति बसवराज होरट्टी ने कहा यह सच है कि यह अभूतपूर्व है, परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि ज्यादातर सदस्य एक ही पार्टी के हैं। होरट्टी खुद जद (एस) छोड़ कर पिछले साल मई में भाजपा में शामिल हो गए थे। स्थिति बहुत ही निराशाजनक है। ऐसे में देखा जाए तो चुनाव में हारे हुए लोगों को समायोजित करने की जगह बन गई है विधान परिषद। यह राजनीतिक दलों के नेताओं के लिए पुनर्वास केंद्र जैसा दिखता है।
दरअसल अपर हाउस का शाब्दिक अर्थ है ऊपरी मंजिल का घर। यह एक ऐसा घर है जिसने विचारकों के मंच का नाम कमाया है। इसके चलते राजनीतिक दलों को उच्च सदन के सम्मान और गुणवत्ता को बनाए रखने की बहुत आवश्यकता है परन्तु मौजूदा राजनीतिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं ऐसे में क्या यह संभव है?
कर्नाटक के उच्च सदन का 115 वर्षों से अधिक का इतिहास है परन्तु निचले सदन के चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने के लिए इतनी बड़ी संख्या में विधान परिषद सदस्यों का इस्तीफा कभी नहीं देखा। आमतौर पर, सदस्य परिषद में शामिल होने के लिए विधानसभा से इस्तीफा दे देते हैं। ऐसी है कर्नाटक उच्च सदन की महान परंपरा परन्तु अब सब कुछ उल्टा हो रहा है।
उच्च सदन में शेष 69 सदस्यों में से और तीन का कार्यकाल मई और जून के बीच समाप्त होगा। मोहन कुमार कोंडज्जी और पी.आर. रमेश का कार्यकाल मई के मध्य में खत्म होगा, जबकि सीएम लिंगप्पा का कार्यकाल जून की शुरुआत में खत्म होगा। तीनों कांग्रेस से हैं। इससे एमएलसी की कुल संख्या घटकर 66 रह जाएगी।
परिषद सदस्य के तौर पर लगभग 42 वर्षों के अपने अनुभव में मैंने कई अच्छे लोगों को देखा है। हाल के दिनों में बहस की गुणवत्ता में गिरावट नहीं देखी गई है। सरकार और राजनीतिक दल पूर्व में कला, संस्कृति और संगीत जैसे विभिन्न क्षेत्रों के बुद्धिजीवियों और विशेषज्ञों को परिषद में लाते थे, परन्तु अब नहीं।