सुप्रीम कोर्ट के फैसले से चुनावी बॉन्ड का विवरण सार्वजनिक होने के बाद सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस सहित इंडिया गठबंधन में बयानबाजी का दौर जारी है। कांग्रेस चुनावी बॉन्ड से चंदा लेने को हफ्ता वसूली बता रही है लेकिन निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के अनुपात के आधार पर दलों को बॉन्ड से प्राप्त चंदे का विश्लेषण करने पर पता चला कि भाजपा और प्रमुख प्रतिपक्षी कांग्रेस को उसकी हैसियत के अनुसार ही चंदा मिला है। इस मामले में कुछ क्षेत्रीय दलों को उनकी चुनावी हैसियत के अनुसार ज्यादा तो कुछ प्रमुख दलों को उससे कम चंदा मिला है।
लोकसभा और विधानसभाओं में भारतीय जनता पार्टी के निर्वाचित प्रतिनिधि सबसे ज्यादा हैं तो उसे सर्वाधिक चंदा मिला है वहीं दूसरे नंबर पर कांग्रेस है। केंद्र व राज्यों की विधायिकाओं की कुल संख्या में भाजपा के सांसद व विधायकों की संख्या करीब 46.2 फीसदी है जबकि उसे चुनावी बॉन्ड से करीब 50.1 फीसदी चंदा मिला है। कांंग्रेेस को उसके निर्वाचित 12.7 फीसदी निर्वाचित प्रतिनिधियों की तुलना में 11.8 फीसदी चुनावी बॉन्ड से चंदा मिला है।
कुछ क्षेत्रीय दलों को मिला ताकत से ज्यादा चंदा चुनावी बॉन्ड का कुछ क्षेत्रीय दलों को उनकी हैसियत से ज्यादा लाभ मिला है। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), तेलंगाना में सत्तारूढ़ रही बीआरएस और ओडिशा में सत्तारूढ़ बीजेडी को निर्वाचित सदस्यों की तुलना में बांड फंड का बड़ा हिस्सा था। बीआरएस की निर्वाचित प्रतिनिधियों में सिर्फ 0.8 प्रतिशत हिस्सेदारी थी लेकिन उसे बांड फंड में 8.5 फीसदी हिस्सेदारी मिली। टीएमसी को 4.9 फीसदी निर्वाचित प्रतिनिधियों में हिस्सेदारी की तुलना में चुनावी बॉन्ड का 10.4 फीसदी हिस्सा मिला। इसी तरह, बीजेडी को केवल 2.6 प्रतिशत प्रतिनिधियों के बावजूद बॉन्ड राशि का 6.2 पतिशत हिस्सा मिला।
क्षेत्रीय दलों में तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके और आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ जगनमोहन रेड्डी की वायएसआर कांग्रेस को चुनावी बॉन्ड से अच्छा चंदा मिलने के बावजूद उनकी चुनावी हैसियत से कम चंदा मिला। एनसीपी, राजद और बिहार में सत्तारूढ़ जेडी (यू) को भी उनके चुनावी प्रतिनिधियां की तुलना में बॉन्ड से कम चंदा मिला। जेडीयू की सांसदों व विधायकों की संख्या के आधार पर निर्वाचित प्रतिनिधियों में 2.2 प्रतिशत हिस्सेदारी है लेकिन उसे मात्र 0.1 चंदा मिला।