गणेश उत्सव के बाद कर्नाटक में गणपति के मूर्ति विसर्जन जुलूस पर पथराव की घटना के बाद गणेश प्रतिमा को ही पुलिस ने जब्त कर लिया है। राज्य में पुलिस के इस एक्शन से इलाके में तनाव का माहौल बन गया है। जानकारी के अनुसार, पुलिस के एक्शन को कर्नाटक के अलावा महाराष्ट्र के भी हिंदू समुदाय में प्रशासन को लेकर निराशा की लहर है। देश में पहली बार ऐसी तस्वीर देखी गई है, जब किसी धार्मिक कार्यक्रम में भगवान की मूर्ति को जब्त किया गया हो। भगवान गणपति हिंदुओं के आराध्य देव हैं। हिंदुओं में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत गणेश वंदना से की जाती है।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ मराठी भाषी हैं। अपने आवास पर उन्होंने भी श्री गणेश की स्थापना की। भगवान गणेश की आरती में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में शामिल हुए। जिसकी कांग्रेस और महाविकास अघाड़ी ने भी आलोचना की थी। इस दौरान कांग्रेस, उद्धव ठाकरे गुट समेत कई नेताओं के इसको लेकर बयान भी आए। देश में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की विश्वसनीयता पर भी चर्चा शुरू हो गई। इन सबके बीच कांग्रेस शासित कर्नाटक में गणपति बप्पा की प्रतिमा जब्त किए जाने की कड़ी निंदा हो रही है। क्योंकि आज तक किसी भी भगवान की मूर्ति को इस तरह जब्त नहीं किया गया। कर्नाटक में ये एक्शन जिस वक्त लिया गया उस पर भी सवाल उठ रहे हैं। दरअसल किसी प्रतिमा को उस वक्त जब करना जब पूजा अर्चना, या फिर विसर्जन होने जा रहा हो, सही में चिंता में डालने वाला है।

देश में 2009 में कांग्रेस की सरकार थी। तब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन थे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गवर्नमेंट हाउस में इफ्तार पार्टी की मेजबानी की और इसमें मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हुए थे। पीएम मोदी की गणपति आरती पर आपत्ति जताने वाले कांग्रेसी आज मनमोहन सिंह और बालाकृष्णन की उस दूसरी पार्टी के बारे में भूल गए। शिंदे गुट के शिवसेना सांसद मिलिंद देवड़ा ने आलोचना करते हुए कहा कि इसका मतलब है कि कांग्रेस के सरकारी आवास पर होने वाली इफ्तार पार्टी की अनुमति है लेकिन गणेश जी की आरती की नहीं।

संभाजी ब्रिगेड की हाल ही में संस्था सालगिरह मनाई गई। कार्यक्रम में इस संगठन के संरक्षक शरद पवार और कोल्हापुर से कांग्रेस सांसद शाहू महाराज भी शामिल हुए। इस दौरान भागवत धर्म की ध्वजा लेने वाले वारकरी संप्रदाय के प्रभु श्री रामचन्द्र और करोड़ों आस्थावानों के आराध्य स्थल स्वामी समर्थ की बहुत ही अभद्र भाषा में आलोचना की गई। स्वामी समर्थ को “कम कपड़ों वाला व्यक्ति” कहा जाता था, लोगों का यह भी कहना है कि उस वक्त शरद पवार और शाहू महाराज ताली बजा रहे थे।

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