बुलंदशहर में गंगा में कछुए अपना कुनबा बढ़ा रहे हैं। इसमें कुछ दुर्लभ प्रजाति के कछुए भी है। पावन गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए वर्ल्ड वाइड फण्ड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) ने जिम्मेदारी उठाई है और रामसर में कछुओं का संरक्षण किया जा रहा है। जिसके लिए अहार में हैचरी सेंटर बनाया गया है। मई महीने में 501 अंडे प्राप्त हुए, जिसमें 478 अंडे सुरक्षित किए गए और कछुओं के नवजात बच्चों को हस्तिनापुर नर्सरी भेजा गया।
मेरठ के हस्तिनापुर में कछुओं को गंगा में छोड़ा गया था और नरोरा बैराज तक गंगा में कछुओं का संरक्षक अभियान चलाया था। नमामि गंगे योजना के तहत केंद्रीय सरकार गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए बड़े कार्यक्रम चला रही है। गंगा में कछुओं की संख्या बढ़ाने के लिए जनवरी 2023 में हैचरी सेंटर तैयार किया गया था। जिसकी देखरेख के लिए डब्ल्यूडब्ल्यूएफ को रखा गया है।
कछुए और घड़ियाल सबसे ज़्यादा गंगा को प्रदूषण मुक्त करने में मदद करते हैं, इसी कारण डब्ल्यूडब्ल्यूएफ गंगा में कछुओं का कुनबा बड़ा रहा है। वन विभाग और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की टीम ने मई में बुगरासी, बस्सी बांगर, गजरौला, मांडव आश्रम के गंगा किनारे करीब 501 अंडे एकत्रित किए थे। इन कछुए के अंडे को एकत्रित कर हैचरी सेंटर में रखा गया था। जून में 95 फीसदी अंडे सुरक्षित हेच किए गए। तीन प्रजाति के 478 नवजात कछुओं को देखरेख के लिए हस्तिनापुर नर्सरी में भेजा गया है।
मादा कछुए ज्यादातर रेत में ही अंडे देती है। इसलिए शासन ने अहार में रेतीली जमीन देखकर हैचरी सेंटर बनाया। साल 2019 के बाद गंगा में कछुओं की गिनती नहीं हो पाई है, लेकिन गंगा में विभिन्न प्रजाति के 500 कछुओं के अंडे प्राप्त हुए हैं। जिन्हें अहार स्तिथ हैचरी सेंटर में रखा गया।
गंगा किनारे हेच किए गए कुल 478 अंडे में से 360 थ्री स्ट्रिप्ड रूफ्ड, 48 ब्राउन रूफ्ड, और 70 नवजात कछुए इंडियन टेंट प्रजाति के पाए गए हैं। वन विभाग के मुताबिक ब्राउन रूफ्ड कछुए बहुत ही कम संख्या में पाए जाते हैं।
वन विभाग के अधिकारिओं ने बताया कि बाढ़ थमने के बाद कछुओं को गंगा में भेजा जाएगा। इसके बाद सभी नवजात कछुओं को हस्तिनापुर से लाकर बुगरासी से लेकर अनूपशहर तक रामसर साइट में छोड़ा जाएगा।