कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बुधवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर आग्रह किया कि सैनिक स्कूलों के ‘निजीकरण’ संबंधी कदम को वापस लिया जाए और इस नीति को रद्द किया जाए। उन्होंने दावा किया कि सशस्त्र बलों एवं उससे संबंधित संस्थाओं को हमेशा राजनीतिक विचारधाराओं की छाया से दूर रखा गया, लेकिन अब इसके उलट प्रयास हो रहा है।खरगे ने पत्र में कहा, ‘‘ आप जानती हैं कि भारतीय लोकतंत्र ने पारंपरिक रूप से हमारे सशस्त्र बलों को किसी भी दलीय राजनीति से दूर रखा है। अतीत में सरकारों ने सशस्त्र बलों और उसके सहयोगी संस्थानों को विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं की छाया से दूर रखा।”

उनका कहना है, ‘‘आप इस व्यापक रूप से स्वीकृत तथ्य की सराहना करेंगी कि यह जानबूझकर किया गया स्पष्ट विभाजन उच्चतम लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप था और अंतरराष्ट्रीय अनुभवों पर आधारित था। इसने वास्तव में हमारे लोकतंत्र को मजबूती से फलने-फूलने दिया, भले ही दुनिया भर में शासन व्यवस्थाएं सैन्य हस्तक्षेप, लोकतंत्र को नष्ट करने और मार्शल लॉ का शिकार हुईं।”कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘‘​मैं आपके ध्यान में एक आरटीआई (सूचना के अधिकार) उत्तर पर आधारित एक जांच रिपोर्ट को लाना चाहता हूं, जिसमें बताया गया है कि सरकार द्वारा शुरू किए गए नए पीपीपी मॉडल का उपयोग करके सैनिक स्कूलों का निजीकरण किया जा रहा है।

उन्होंने कहा, ”अब इनमें से 62 प्रतिशत स्कूलों को लेकर बताया जाता है कि उनका स्वामित्व भाजपा-आरएसएस नेताओं के पास है।” उनके अनुसार, ​देश में 33 सैनिक स्कूल हैं तथा ये पूरी तरह से सरकारी वित्त पोषित संस्थान थे जो रक्षा मंत्रालय (एमओडी) के तहत एक स्वायत्त निकाय, सैनिक स्कूल सोसाइटी (एसएसएस) के तत्वावधान में संचालित थे।खरगे ने दावा किया, ‘‘ ​रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि जिन 40 एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए हैं, उनमें से 62 प्रतिशत आरएसएस-भाजपा-संघ परिवार से संबंधित व्यक्तियों और संगठनों के साथ हस्ताक्षरित किए गए हैं। इसमें एक मुख्यमंत्री का परिवार, कई विधायक, भाजपा पदाधिकारी और आरएसएस नेता शामिल हैं।”

उन्होंने कहा, ‘‘मैं पूछता हूं कि क्या इसे प्रवेश स्तर पर सशस्त्र बलों को वैचारिक रूप से प्रेरित करने के लिए प्रभावी बनाया गया है? किसी भी राजनीतिक दल ने कभी ऐसा नहीं किया, क्योंकि हमारे सशस्त्र बलों की वीरता और साहस को दलगत राजनीति से दूर रखने के लिए आम राष्ट्रीय सहमति है।”खरगे ने आग्रह किया कि राष्ट्रीय हित में इस निजीकरण नीति को पूरी तरह से वापस लिया जाए और रद्द किया जाए ताकि सशस्त्र बल स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे राष्ट्र की सेवा के लिए आवश्यक वांछित चरित्र, दृष्टि और सम्मान बरकरार रख सकें।

 

 

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