भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को एक संवेदनशील और लंबे समय से चर्चा में रहे मुद्दे पर विचार करने की सहमति दी है। यह मामला यह तय करने से जुड़ा है कि क्या मुस्लिम समुदाय को शरीयत कानून की जगह भारतीय धर्मनिरपेक्ष उत्तराधिकार कानून के तहत पैतृक संपत्तियों के मामलों में शामिल किया जा सकता है, और क्या इससे उनकी धार्मिक आस्था पर कोई प्रभाव पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट की यह सुनवाई ना केवल मुस्लिम समुदाय के कानूनी अधिकारों से जुड़ी है, बल्कि इससे भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, और समानता के अधिकार जैसे मूलभूत मुद्दों पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
अब सबकी निगाहें अदालत के अगले कदम और सरकार की प्रतिक्रिया पर टिकी हैं।
केरल निवासी नौशाद की याचिका बनी बहस की वजह
यह मामला तब सामने आया जब केरल के त्रिशूर जिले के निवासी नौशाद के.के. ने एक याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वह इस्लाम धर्म का पालन करते हुए भी शरीयत के बजाय भारतीय उत्तराधिकार कानून के दायरे में आना चाहते हैं। नौशाद ने स्पष्ट किया कि वह इस्लाम को धर्म के रूप में त्यागना नहीं चाहते, लेकिन वे पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे में एक न्यायसंगत और समान कानून की मांग कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया: केंद्र और केरल सरकार से मांगा जवाब
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने इस याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार किया। साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार और केरल सरकार को नोटिस जारी कर इस पर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
इससे पहले भी दायर हो चुकी हैं समान याचिकाएं
यह मामला पूरी तरह नया नहीं है। इससे पहले अप्रैल 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘एक्स-मुस्लिम्स ऑफ केरल’ की महासचिव सफिया पी एम की याचिका पर भी विचार करने की सहमति दी थी। सफिया ने खुद को एक नास्तिक मुस्लिम महिला बताया और कहा कि वह भी शरीयत के बजाय भारतीय उत्तराधिकार कानून के अनुसार संपत्ति का निपटान करना चाहती हैं। इसके अतिरिक्त, 2016 में कुरान सुन्नत सोसाइटी की ओर से भी एक याचिका दाखिल की गई थी, जो अब तक लंबित है। अब सुप्रीम कोर्ट ने तीनों याचिकाओं को एक साथ सुनवाई के लिए जोड़ने का आदेश दिया है।
क्या है मुख्य मुद्दा? शरीयत बनाम धर्मनिरपेक्ष उत्तराधिकार कानून
भारत में मुसलमानों के लिए शरीयत कानून लागू होता है, जो इस्लामिक सिद्धांतों के अनुसार संपत्ति और उत्तराधिकार के नियम तय करता है।
वहीं, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 एक धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी समुदायों के लिए समान पैमाने पर संपत्ति के अधिकार तय करता है — सिवाय मुस्लिम, ईसाई, यहूदी और पारसी समुदायों के कुछ अपवादों के।
विवाद और विचार: आस्था बनाम समान नागरिक अधिकार
इस मामले ने कई संवेदनशील सवालों को जन्म दिया है, जैसे:
➤ क्या कोई व्यक्ति अपनी धार्मिक पहचान बनाए रखते हुए धर्मनिरपेक्ष कानून को चुन सकता है?
➤ क्या शरीयत से बाहर जाकर उत्तराधिकार का निपटारा करना इस्लाम के सिद्धांतों का उल्लंघन है?
➤ क्या यह मामला यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की दिशा में एक कदम हो सकता है?