मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बुधनी विधानसभा सीट में अजेय रहे हैं, लेकिन इस बार का चुनाव उनके लिए थोड़ा अलग प्रतीत हो रहा है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस बार के चुनाव में मुख्यमंत्री पद के लिए ‘मामा’ को पार्टी का चेहरा नहीं बनाया है। राज्य में ‘मामा’ के नाम से मशहूर चौहान ने बुधनी सीट से पांच बार विधानसभा चुनाव लड़ा है और 60 प्रतिशत या उससे अधिक वोट हासिल करके वह अजेय रहे हैं, लेकिन इस बार का चुनाव बुधनी के लिए थोड़ा अलग दिखाई दे रहा है।
इस बार सत्तारूढ़ दल ने राज्य विधानसभा चुनाव के लिए लोकसभा के सात सदस्यों को मैदान में उतारा है, जिनमें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रह्लाद पटेल, रीति पाठक, राकेश सिंह, गणेश सिंह और उदय प्रताप सिंह शामिल हैं। भाजपा ने पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को भी चुनाव मैदान में भेजा है।
इस कदम से संकेत मिलते हैं कि भाजपा ने राज्य के मुख्यमंत्री पद के लिए विकल्प खुले रखे हैं और मध्य प्रदेश के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले चौहान एकमात्र पसंद नहीं हो सकते हैं।
चौहान ने 1990 में बुधनी से विधानसभा चुनाव जीता था। हालांकि, भाजपा ने उन्हें 1991 में विदिशा लोकसभा सीट से उस वक्त मैदान में उतारा था, जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ संसदीय सीट बरकरार रखने के लिए विदिशा से इस्तीफा दे दिया था।
भाजपा के एक प्रमुख ओबीसी चेहरा शिवराज सिंह चौहान ने 2013 में कांग्रेस के महेंद्र सिंह चौहान को 84,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया था। इसके बाद 2018 में उनकी जीत का अंतर घटकर लगभग 59,000 मतों का रह गया था। उस वक्त कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव को मैदान में उतारा था। वह भी ओबीसी नेता हैं।
कांग्रेस ने इस बार बुधनी में चौहान के मुकाबले के लिए टीवी अभिनेता विक्रम मस्तल को मैदान में उतारा है, जिन्होंने एक धारावाहिक में हनुमान की भूमिका निभाई है।चौहान की अस्वाभाविक शैली ने उन्हें मध्य प्रदेश में ‘मामा’ उपनाम दिया है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कांग्रेस ने चौहान की तुलना में कमजोर उम्मीदवार को मैदान में उतारकर ‘मामा’ के लिए मुकाबले को आसान बना दिया है।
समाजवादी पार्टी (सपा) ने भी वैराग्यानंद गिरि उर्फ ‘मिर्ची बाबा’ को बुधनी से पार्टी का टिकट दिया है। बाबा ने 2019 में भोपाल लोकसभा सीट से कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की जीत के लिए मिर्च का इस्तेमाल करके हवन (अनुष्ठान) किया था, हालांकि भाजपा की प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने बाजी मार ली थी।भाजपा ने इस बार चौहान को अपना मुख्यमंत्री चेहरा बनाने से परहेज किया है तथा इसका संकेत 17 नवंबर को होने वाले चुनावों के लिए सात सांसदों और एक पार्टी महासचिव को मैदान में उतारने के पार्टी के फैसले से मिल रहा है।
इस साल अगस्त में मीडिया से बातचीत के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से जब पूछा गया था कि अगर चुनाव के बाद भाजपा सत्ता में बरकरार रहती है तो क्या चौहान ही मुख्यमंत्री होंगे, तो उन्होंने सीधा जवाब देने से इनकार कर दिया था।
शाह ने कहा था, ‘‘आप (मीडिया) पार्टी का काम क्यों कर रहे हैं? हमारी पार्टी अपना काम करेगी। आप मोदी जी (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) और शिवराज जी के विकास कार्यों को जनता तक ले जाएं। यह भी बताएं कि क्या कांग्रेस ने कोई विकास कार्य किया है?’’
भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने बुधवार को कहा कि विधानसभा चुनाव जीतने और राज्य में सरकार बनाने के बाद उनकी पार्टी का संसदीय बोर्ड इस पर निर्णय लेगा कि मध्य प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा।
भोपाल स्थित वरिष्ठ पत्रकार एवं बुधनी के मूल निवासी राघवेंद्र सिंह ने कहा कि कांग्रेस ने पिछले दो दशक में चौहान के सामने चुनौती पेश करने के लिए इस निर्वाचन क्षेत्र में शायद ही अपना जुझारू चेहरा प्रदर्शित किया हो।
उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में मतदाताओं के बीच पैठ बनाने के लिए कांग्रेस का कोई बड़ा आंदोलन नहीं देखा गया है और इतना ही नहीं, यह एक स्थानीय राजनीतिक चेहरा विकसित करने में विफल रही है, जो भाजपा के वरिष्ठ नेता चौहान का मुकाबला कर सके।
शाहगंज (बुधनी विधानसभा सीट का हिस्सा) के किसान भूपेश भदौरिया (37) ने फोन पर ‘पीटीआई-’ को बताया कि उनके क्षेत्र में सड़कों का निर्माण किया गया है और बिजली की आपूर्ति अच्छी है।