दिल्ली विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होता जा रहा है। कांग्रेस इस चुनाव में कहीं नजर नहीं आ रही है और बीजेपी नए रणनीतियों के साथ लगातार लोगों को चौंका रही है। अरविंद केजरीवाल के खिलाफ प्रवेश वर्मा और आतिशी के खिलाफ रमेश बिधूड़ी को उतारने के बाद बीजेपी आप के एक और नेता को कड़ी टक्कर देने के मूड में है। कहा जा रहा है कि स्मृति ईरानी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी आलाकमान उतार सकता है। अमेठी से लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। एक लाख 66 हजार का आंकड़ा स्मृति ईरानी आसानी से भूला नहीं सकेंगी। राहुल गांधी को अमेठी में चुनौती देते देते 2024 के लोकसभा इससे ज्यादा वोटों से स्मृति ईरानी हार गई थी। वो भी पार्टी के सामान्य कार्यकर्ता की भूमिका में रहने वाले केएल शर्मा के सामने। जानकारों का मानना था कि अमेठी की जनता में स्मृति ईरानी को लेकर खासी नाराजगी थी। इससे पहले 2019 में वो राहुल गांधी को हरा चुकी थी। तब ये चर्चा शुरू हुई थी कि राहुल गांधी ने अमेठी आना ही बंद कर दिया है। अब स्मृति ईरानी के चुनाव हारने के बाद ये बात उल्टी हो गई है। दावा है कि स्मृति ईरानी ने अमेठी जाना ही बंद कर दिया है। लोकसभा में हार के बाद उनकी राजनीति शून्य सी हो गई। संसद से भी आउट हुई थी बहुत ज्यादा पब्लिक अपीयिरेंस में नजर नहीं आईं।
अब अचानक स्मृति ईरानी की उपस्थिति दिल्ली के चुनाव में नजर आ रही है। सूत्र दावा तो यहां तक कर रहे हैं कि दिल्ली में उन्हें बीजेपी का सीएम फेस तक बनाया जा सकता है। दावा किया जा रहा है कि बीजेपी स्मृति ईरानी को दिल्ली कैंट या ग्रेटर कैलाश विधानसभा सीट से टिकट दे सकती है। खबर है कि दिल्ली कैबिनेट में मंत्री सौरभ भारद्वाज के सामने बीजेपी एक मजबूत चेहरा उतारने का मन बना रही है। वैसे भी बीजेपी के पास दिल्ली में कोई बड़ा चेहरा नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में स्मृति ईरानी इस कमी को पूरा कर सकते हैं। खबर तो ये भी है कि बीजेपी स्मृति ईरानी को महिला मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में भी पेश कर सकती है। फिलहाल दिल्ली की कमान एक महिला सीएम के हाथ में ही है। आतिशी से पहले भी दिल्ली को दो बार महिला मुख्यमंत्री मिल चुकी है। 1998 में सुषमा स्वराज दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। हालांकि स्वराज सिर्फ 52 दिन की सीएम रह पाई थी। चुनाव नतीजे आए तो बीजेपी बुरी तरह चुनाव हार गई थी। 1998 में ही चुनाव नतीजे आए तो कांग्रेस ने जीत दर्ज की और शीला दीक्षित को सीएम बनाया। लगातार वो 15 साल तक सीएम रहीं।
आपको 2019 में स्मृति ईरानी की वो जीत याद होगी जब उन्होंने अमेठी में राहुल गांधी को हराया था। उस जीत के साथ स्मृति ईरानी का कद काफी बढ़ गया था। बीजेपी के कद्दावर नेताओं में वो शुमार हो गई थी। लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब स्मृति नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोले नजर आई थी। 2004 में स्मृति ईरानी ने तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी की बहुत तीखी आलोचना की थी। उन्होंने गुजरात दंगों के लिए मोदी से इस्तीफ़े तक की मांग कर डाली थी और कहा था कि वह इसके लिए भूख हड़ताल करेंगी। हालांकि वह अनशन पर बैठी नहीं। साल 2004 की खटास समय के साथ मिठास में बदली और एक दशक बाद साल 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान स्मृति ईरानी ज़ोर-शोर से नरेंद्र मोदी की बड़ाई करती दिखीं। एक टीवी इंटरव्यू में स्मृति ने माना था कि गुजरात दंगों पर नरेंद्र मोदी को लेकर उनका नजरिया बेहद क्रूर था।