इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा है कि एक व्यक्ति नशे में चूर था, यह साबित करने के लिए उस व्यक्ति का केवल बाह्य परीक्षण पर्याप्त नहीं है। इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की पीठ ने पुलिस कांस्टेबल जय मंगल राम को सेवा में बहाल करने का आदेश दिया। ड्यूटी पर रहते हुए जय मंगल राम ने कथित तौर पर नशे की हालत में अपने वरिष्ठ अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार किया था। अदालत ने नशे में होने का निष्कर्ष निकालने के लिए रक्त एवं पेशाब की जांच की जरूरत पर बल दिया।
पीठ ने कहा, ‘‘इस मामले में याचिकाकर्ता को चिकित्सा अधिकारी के पास ले जाया गया जहां डाक्टर ने बाहर से ही उसकी जांच की और शराब की गंध से यह निष्कर्ष निकाल लिया कि उसने शराब पी थी। इसलिए एक व्यक्ति को शराब पीने का दोषी करार देने के लिए महज बाहर से जांच, पर्याप्त साक्ष्य नहीं है।” यह मामला वाराणसी का है जहां पुलिस लाइन में कांस्टेबल के रूप में कार्यरत याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप था कि उसने नशे की हालत में अपने वरिष्ठ अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार किया। इस संबंध में उसकी शिकायत की गई और उसे निलंबित कर दिया गया। बाद में उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
विभागीय जांच पर गौर करने के बाद अदालत ने कहा, “हमारा मत है कि जांच के दौरान नशे की हालत में वरिष्ठ अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार का कोई आरोप याचिकाकर्ता के खिलाफ साबित नहीं हुआ क्योंकि याचिकाकर्ता के रक्त या पेशाब की जांच नहीं की गई। चूंकि दंड का आदेश वैधानिक नियमों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन कर पारित किया गया, इसलिए इसे अशक्त और शून्य किया जाता है।” अदालत ने पिछले शुक्रवार को इस रिट याचिका को स्वीकार करते हुए निर्देश दिया, “याचिकाकर्ता को सतत रूप से सेवा में बहाल किया जाएगा और सेवा से बाहर रहने की अवधि के लिए 50 प्रतिशत वेतन के साथ यह बहाली होगी। प्रतिवादियों को तत्काल प्रभाव से याचिकाकर्ता को सेवा में बहाल करने और इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तिथि से दो महीने के भीतर पिछले वेतन का भुगतान करने का निर्देश दिया जाता है।”