चूहे कानपुर में कहर ढा रहे हैं। उन्होंने अंदर-अंदर यूपी की सबसे बड़ी गल्लामंडी कलक्टरगंज को खोद डाला है। हर महीने पांच लाख रुपये से ज्यादा का राशन चूहों के पेट में जा रहा है। बिल्लियां पालकर भी गोदामों की सुरक्षा नहीं हो पाई तो यहां अब एक नए तरह का रोजगार सृजित हो गया है। तमाम कारोबारियों ने दुकान-गोदाम पर ‘मुसखेदवा’ भर्ती कर लिए हैं। यह रात भर जागते हैं। बोरे कुतर रहे चूहे भगाते हैं। इन्हें व्यापारी पांच-छह हजार रुपये महीने दे रहे हैं।
अपने गोदाम में चूहों का कहर झेल रहे चावल कारोबारी राकेश कुमार ने कहा-गोदाम में माल रखवाते वक्त जेहन में चूहों का डर सताता है। कितने बोरे सुरक्षित बचेंगे, नहीं पता। इसके लिए एक ‘मुसखेदवा’ लगाते हैं, जो रात भर चूहों को भगाता है। कलक्टरगंज उद्योग व्यापार मंडल के अध्यक्ष आशीष मिश्रा, थोक कारोबारी राकेश द्विवेदी, राजा सभी चूहों से तंग हैं। तंग गलियों में बसी इस मंडी की अधिकांश सड़कें धंस गई हैं।
कलक्टरगंज में गल्ला, चावल, सिंगाड़ा, गुड़ के थोक बाजार हैं। चूहों को भरपूर पौष्टिक आहार उपलब्ध है। ताकत इतनी कि मंडी की इमारतें भी सुरक्षित नहीं बचीं। लगभग हर इमारत की नींव कुतरी हुई है। कारोबारी अभिषेक कहते हैं कि हमेशा हादसे का डर बना रहता है। खाद्य सामग्री के पैकेटे कुतरने से बड़ा नुकसान होता है। कुतरे पैकेट आधी कीमत पर जाते हैं।
चूहों ने सड़क के नीचे सुरंगें बना डाली हैं। मंडी से माल गोदाम व रेलवे स्टेशन तक चूहे सड़क के नीचे ही नीचे पहुंच जाते हैं। कारोबारी बताते हैं- एक बार कुछ चूहों लाल रंग से रंग कर उन्हें माल गोदाम और रेलवे स्टेशन पर छोड़ा गया। अगले दिन वही लाल चूहे मंडी में थे। जाहिर है कि कम से कम आधा किमी लंबी सुरंग खुदी हुई है।
1984 में शहर का सबसे बड़ा 52 सीटर सुलभ शौचालय कलक्टरगंज मंडी में बनाया गया। चूहों ने खेद डाला। सीटें व फर्श बर्बाद कर दी। अब कायाकल्प हो रहा है। फिलहाल अभी 12 सीटें शुरू की गई हैं।