पिछड़े वर्गों को लेकर कांग्रेस पार्टी की दमनकारी नीतियां दशकों से चली आ रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा मंडल आयोग की सिफारिशों को दबाने से लेकर वर्तमान में राहुल गांधी की नीतियों तक, पार्टी ने लगातार पिछड़ों के अधिकारों को हाशिये पर रखा है। इस चुनाव में राहुल गांधी जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (JKNC) के घोषणापत्र का समर्थन करते हैं। जिसमें जम्मू-कश्मीर में दलितों, गुज्जरों, बकरवालों और पहाड़ियों के लिए आरक्षण समाप्त करने की बात की गई है। इस घोषणापत्र में यह भी कहा गया है कि सत्ता में आने पर कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस, जम्मू और कश्मीर में आरक्षण नीति की समीक्षा करेंगे।

पिछड़े वर्गों और दलितों के अधिकारों के प्रति विरोध  कांग्रेस का कोई नई बात नहीं है। दशकों से पार्टी ने उन सुधारों को दबाने की कोशिश की है, जो इन समुदायों के लिए जरूरी थे। चाहे नेहरू का डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रति विरोध हो या फिर इंदिरा गांधी का मंडल आयोग को नजरअंदाज करना, कांग्रेस ने सामाजिक न्याय के मुद्दों पर हमेशा से दोहरे मापदंड अपनाए हैं।

डॉ. भीमराव अंबेडकर और पंडित जवाहरलाल नेहरू के बीच दलित अधिकारों और आरक्षण जैसे मुद्दों पर गहरे मतभेद थे। 1952 और 1954 के चुनावों में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अंबेडकर के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से प्रचार किया था जिससे अंबेडकर को हराने की कोशिश की गई। इसके बावजूद, जनसंघ के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अंबेडकर को राज्यसभा में भेजने में मदद की। जिसको नेहरू की नीति की कड़ी आलोचना हुई। नेहरू का आरक्षण और सामाजिक न्याय के प्रति नकारात्मक रुख 1956 में काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट को ठुकराने से साफ था। इसके बाद 1961 में, नेहरू ने चिंता जताई कि आरक्षण से कामकाज की उत्पादकता कम होगी। यह उनके पूर्वाग्रह को और उजागर करता है, जो दलित और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के खिलाफ था।

इंदिरा गांधी ने 1980 में मंडल आयोग की सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया। आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को आरक्षण देने की बात कही थी, लेकिन इंदिरा और उनके बेटे राजीव गांधी ने इसे अनदेखा किया। 1990 में, मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का समय आया, तो कांग्रेस ने फिर से इसका विरोध किया। राजीव गांधी ने यह तक कहा कि आरक्षण से कामकाजी क्षमता में कमी आएगी, जो उनकी पिछड़े वर्गों के प्रति सोच को उजागर करता है।

जब राज्य से 2019 में आर्टिकल 370 हटाया गया, तब से जम्मू-कश्मीर के वाल्मीकि, गुज्जर-बकरवाल और पहाड़ी समुदायों के लिए एक नई उम्मीद की किरण जगी। यह समुदाय जो सालों से अधिकारों से वंचित थे, उन्हें सरकारी नौकरियों और अन्य अवसरों में भागीदारी मिली। वाल्मीकि समुदाय के नेता घेलु राम कहते हैं कि, ” पांच अगस्त 2019 का ऐतिहासिक दिन हमारे लिए एक नई सुबह लेकर आया। आर्टिकल 370 का हटना सिर्फ एक राजनीतिक कदम नहीं था, बल्कि यह हमारे जैसे समुदायों के लिए एक जीवन रेखा थी, जो सालों से अधिकारों और अवसरों से दूर थे। सरकारी नौकरी और अवसर जो कभी असंभव लगते थे, वो अब हमारी पहुंच में हैं।”

यह स्पष्ट है कि अनुच्छेद 370 का हटाया जाना सिर्फ राजनीतिक बदलाव नहीं था, बल्कि यह सामाजिक प्रगति की दिशा में एक बड़ा कदम था। लेकिन अब, कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का घोषणापत्र इस प्रगति को खतरे में डाल रहा है। अगर आर्टिकल 370 को फिर से लागू किया गया, तो वाल्मीकि, गुज्जर-बकरवाल और पहाड़ी समुदायों के अधिकार छिन जाएंगे। 26 वर्ष की अनीता कुमारी नेशनल कॉन्फ्रेंस के मेनिफेस्टो को पढ़ने के बाद विचलित हैं उनका कहना है “अगर 370 को वापस लाया गया, तो हमारी पूरी प्रगति ध्वस्त हो जाएगी। यह हमारे समुदायों के लिए एक बड़ी बाधा साबित होगी। हमें अपने अधिकारों के लिए अब और भी ज्यादा सतर्क रहना होगा।”

वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी, जो खुद को संवैधानिक मूल्यों का रक्षक बताते हैं, आरक्षण के मुद्दे पर खामोश हैं। उनकी चुप्पी कांग्रेस की असल मंशा पर सवाल खड़े करती है। यह कांग्रेस के पुराने इतिहास के साथ मेल खाता है, जब पार्टी ने अतीत में भी दलित और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के खिलाफ काम किया है। राहुल गांधी का अंतरराष्ट्रीय दौरों के दौरान बड़े-बड़े बयान देना, असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है।

आने वाले जम्मू-कश्मीर चुनाव 2024 में वाल्मीकि, गुज्जर-बकरवाल और अन्य पिछड़े समुदायों के अधिकारों का भविष्य तय करेंगे। कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का घोषणापत्र यदि लागू होता है, तो यह समुदायों को फिर से कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। यह सिर्फ एक राजनीतिक लड़ाई नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई है, जो इन वंचित समुदायों के भविष्य के लिए निर्णायक साबित होगी।

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